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चतुर्थः
श्लोकार्थ
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१२५
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प्रदेशों में, महाराष्ट्र = महाराष्ट्र में, लाटके = लाट देश में. इत्यादिधर्मक्षेत्रेषु = इत्यादि धर्मक्षेत्रों में प्रभुणा भगवान् के द्वारा, धर्मः = धर्म, ईरितः = फैलाया गया सुस्थिर किया गया। च = और, अखिलैः सम्पूर्ण मुनिवृन्दों के सार्धं = साथ, यदृच्छयः अपनी इच्छा से, उत्तमः = उत्तम, विहारः विचरण, कृतः = किया गया ।
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मासमात्रावशिष्टायुर्यदासीत्संहरन्
सम्मेदपर्वतं
गत्वा स्थितो
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अन्वयार्थ यदा जब मासमात्रावशिष्टायुः केवल एक माह आयु शेष. आसीत् = थी; (तदा = तब ). ध्वनिं दिव्यध्वनि को, संहरन् = समेटते हुये. (प्रभुः - भगवान्) सम्मेदपर्वतं = सम्मेदशिखर पर्वत पर, गत्वा = जाकर, आनन्दकूटके = आनन्द कूट पर हि = ही, स्थितः - रुक गये ठहर गये ।
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तथा प्रभु ने अङ्ग, बङ्ग, कलिङ्ग, काश्मीर, मालवा, हम्मीर, खेट, घोट, महाराष्ट्र, लाट आदि धर्मक्षेत्रों में धर्म को फैलाया सुस्थिर किया तथा जो इच्छा हुई तदनुसार सभी मुनिवृन्दों के साथ उत्तम विहार किया ।
ध्वनिम् ।
ह्यानन्दकूटके ।। ४७ ।।
श्लोकार्थ – जब आयु केवल एक माह शेष रही तो दिव्यध्वनि को समेटते हुये अर्थात् उसका संकोच करते हुये प्रभु सम्मेदशिखर पहुंचकर आनन्द कूट पर ही स्थित हो गये । शुक्लध्यानधरो देवश्चैत्रासिते दले शुभे । सहस्रमुनिभिः अन्वयार्थ चैत्रासिते = चैत्र मास के कृष्ण, दले षष्ठी के दिन, शुभे शुभ मुहूर्त में शुक्लध्यानधरः = शुक्लध्यान को धारण करने वाले, देवः = भगवान् ने सहस्रमुनिभिः = हजार मुनियों के साथ, प्रतिमायोगं = प्रतिमायोग में आस्थितः = स्थित हुये।
षष्ठ्यां प्रतिमायोगमास्थितः । ।४८ ।।
= पक्ष में षष्ठ्यां
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श्लोकार्थ – चैत्र कृष्णा षष्ठी के दिन शुभ मुहूर्त में शुक्लध्यान को धारण करने वाले प्रभु हजार मुनियों के साथ प्रतिमा योग में स्थित हो गये ।