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________________ ११४ - ब्रह्मचर्यधशे नित्यं सिद्धध्यानसमारूढः 1 = अन्वयार्थ तथा और, (तः यह अहमिन्द्र), त्रित्रिंशगमने तेतीस पक्ष चले जाने पर, श्वासोच्छ्वासधरः श्वासोच्छ्वास धारण करने वाला चतुरङ्गुलकन्यूनः = चार अङ्गुल कम. हस्तमात्रशरीरकः = एक हाथ शरीर वाला, सप्ततत्त्वव्रजाञ्चितः = सात तत्त्वों के चिन्तन में बुद्धि को विचरण कराता हुआ, नित्यं = सदैव, ब्रह्मचर्यधरः = ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला, सिद्धध्यानसमारूढः - सिद्धभगवन्तों के ध्यान में सम्यक् रूप से आरूढ़ होता हुआ अर्थात्, सिद्धध्यानरतः अपने स्वयं सिद्ध स्वरूप में लीन होकर अर्थात् ध्यान लगाकर लीन, अभवत् = होता था । श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य - सप्ततत्त्वप्रजाञ्चितः । सिद्धध्यानरतोऽभवत् ||१३|| = श्लोकार्थ और वह अहमिन्द्र तेतीस पक्ष चले जाने पर श्वासोच्छ्वास धारण करने वाला चार अंगुल कम एक हाथ शरीर वाला सात तत्त्वों के चिन्तल में बुद्धि को विचरण कराता हुआ सदैव ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला सिद्धभगवन्तों में सम्यक् रूप से आरूढ़ होता हुआ अपने स्वयं सिद्ध स्वरूप में लीन होता था । अहमिन्द्रसुखेऽप्येष मासषट्कावशिष्टायुः तत्राभवत्प्रभुस्तस्य - = महत्त्वासक्तिवर्जितः । कर्मक्षयसमुत्सुकः ।।१४।। भूम्यागमनसत्कथां । शृणुध्वं साध्वाः सर्वे श्रवणात्पापपङ्कहाम् ||१५|| अन्वयार्थ - तत्र = सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्रसुखे अहमिन्द्र को प्राप्त सुख में, अपि = भी, महत्त्वासक्तिवर्जितः - महत्त्व मानने रूप आसक्ति से रहित, मासषट्कावशिष्टायुः = छह माह अवशिष्ट आयु वाला एषः = यह प्रभुः = भगवान् अभिनन्दननाथ का जीव, कर्मक्षयसमुत्सुकः कर्मों का क्षय करने के लिये उत्सुक, अभवत् = हुआ। सर्वे = सभी, साधवः ! - हे साधुओ! (यूर्य तुम), श्रवणात् = सुनने से पापपङ्कहां 1
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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