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________________ २) तृतीया १०६ श्लोकार्थ - भगवान् महावीर के उपदेश के उपरान्त कुछ समय पीछे लोहाचार्य द्वारा कहा गया या प्रेरित किया गया जो सम्मेदशिखर का माहात्म्य है, वह भव्यजनों में प्रमाण ही हैं तथा अगव्य लोग उसमें अधिकारी नहीं होते हैं। श्री सम्मेदगिरीन्द्रदत्तधवल प्रख्यात कूटस्थितः । कायोत्सर्गविधानतत्परमतिर्योगीन्द्र वृन्दार्चितः ।। योगादाप्तनिरामयः सुखमयोध्यानाग्निदग्धाखिलव्यामोहप्रविकरस पातु सततं श्रीशम्भवो वः प्रभुः । ।७८ ।। अन्ध्यार्थ श्रीसम्मेदगिरीन्द्रदत्तधवलप्रख्यातकूटस्थितः = श्री सम्मेदशिखर पर्वतराज की दत्तधवल नामक प्रसिद्ध कूट पर सुस्थित कायोत्सर्गविधानतत्परमतिः - कायोत्सर्ग करने में तत्पर बुद्धि वाले, योगीन्द्रवृन्दार्चितः योगीन्द्रों-मुनिराजों के समूह द्वारा पूजे जाते हुये, योगादाप्तनिरामयः योग से निरामय स्वरूप को प्राप्त, सुखमः = सुखस्वरूपी ध्यानाग्निदग्धाखिलव्यामोहप्रविकः = ध्यानाग्नि से सम्पूर्ण मोह समूह को दग्ध करने वाले, सः = वह, प्रभुः भगवान् श्रीशम्भवः श्रीसंभवनाथ, तुम सबकी श्लोकार्थ श्री सम्मेदशिखर पर्वतराज की सुविख्यात दत्तधवलकूट पर विराजमान, कायोत्सर्ग करने में तत्पर योगीन्द्रों-मुनिराजों से पूजित, योग से निरामयता को प्राप्त, सुख स्वरूप वाले और ध्यानाग्नि से सम्पूर्ण मोह समूह को दग्ध करने वाले वे श्री संभवनाथ भगवान् तुम्हारी सबकी रक्षा करें। वः = पातु रक्षा करें। - = - ( इति श्री सम्मेदगिरिमाहात्म्ये दत्तधवलकूटवर्णनं श्रीशम्भवनाथतीर्थेशवृत्तान्तं नाम तृतीयोऽध्यायः समाप्तः । ) (इस प्रकार श्रीसम्मेदगिरीमाहात्म्य में दत्तधवलकूट का वर्णन और श्रीतीर्थङ्कर संभवनाथ का वृत्त विवेचक यह तृतीय अध्याय समाप्त हुआ ।)
SR No.090450
Book TitleSammedshikhar Mahatmya
Original Sutra AuthorDevdatt Yativar
AuthorDharmchand Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Pilgrimage
File Size12 MB
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