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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य अन्वयार्थ - तेनापि = मघवा चक्रवर्ती द्वारा भी, सम्मेदस्य = सम्मेदशिखर
की, विलासदायिनी = आनन्दकारिणी, शुभा = शुभ फल वाली. यात्रा - तीर्थ वंदना रूप यात्रा, संघतः = संघ की अपेक्षा, द्वात्रिंशल्लक्षसंघेन = बतीस लाख के संघ या समूह के, (सह
= साथ), कृता = की थी। श्लोगार्थ - मघवः बीवी ने सम्मेदशिखर पर्वत की शुभ और
आनन्दकारिणी यात्रा संघ की अपेक्षा बत्तीस लाख मनुष्यों के
समूह के साथ की थी। यात्रा सम्मेदशैलस्य सर्वकार्यफलप्रदा ।
कर्तव्या सततं सुझैः चतुर्वर्गफलार्थिभिः ।।७६।। अन्चयाथ • चतुर्वर्गफलार्थिभिः = चारों वर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ, काम और
मोक्षरूपी फल चाहने वाले, सुज्ञैः = ज्ञानियों द्वारा. सम्मेदशैलस्य = सम्मेदशिखर पर्वत की, सर्वकामफलप्रदा = कामना किये गये सभी फल देने वाली, यात्रा = तीर्थवन्दना रूप यात्रा, सततं = हमेशा या अवश्य, कर्तव्या = की जानी
चाहिये। श्लोकार्थ - धर्म-कर्म-काम-मोक्ष रूपी चतुर्वर्ग पुरूषार्थ के फल को चाहने
वाले सुविज्ञ जनों द्वारा अवश्य ही सम्मेदशिखर की कामना
किये सभी फलों को देने वाली यात्रा की जानी चाहिये। वर्धमानोक्लितः पश्याल्लोहाचार्येरितं च यत् । तद्भव्येषु प्रमाणं हि अभव्यानाधिकारिणः ।।७।। अन्वयार्थ · वर्धमानोक्तितः = वर्धमान भगवान् के उपदेश के बाद, पश्चात्
= पीछे अर्थात् कुछ समय के उपरान्त, लोहाचार्येरितं = लोहाचार्य द्वारा बताया या प्रेरित किया गया, यत् = जो सम्मेदशिखर का माहात्म्य (अस्ति = है), तत् = वह माहात्म्य, भव्येषु = भव्य जीवों में, प्रमाणं = प्रमाणभूत. हि = ही, (वर्तते = होता है), (तत्र = उसमें), अभव्याः = अमव्यजीव, अधिकारिणः = अधिकारी, न = नहीं, भवन्ति = हाते हैं।