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तृतीया
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हुआ. सम्मेदं = सम्मेदशिखर क्षेत्र को, अगमत् = गया। श्लोकार्थ - मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका इन चारों संघों की यथायोग्य
विधिपूर्वक पूजा करके एक करोड़ लोगों को साथ लेकर वह राजा अत्यधिक उत्साह के साथ सम्मेदशिखर तीर्थ क्षेत्र पर
गया। सः सिद्धपर्वतं भूप: संपूज्य विधियत्तदा।
त्रिः परिग्राम्य हर्षेण सह चागापाल सम् ६३।। A... अन्वयार्थ - तदा च = और तब अर्थात् सिद्धपर्वत पर पहुंचने के बाद, सः
- वह, भपः = राजा, विधिवत = विधिपर्वक. सिद्धपर्वतं = सिद्धपर्वत को. संपूज्य = पूजकर, हर्षेण सह - हर्ष के साथ, (तस्य = उसकी) त्रिः = तीन, परिक्रम्य = परिक्रमा या प्रदक्षिणा करके, स्वं = अपने, आलयं = घर को, अगात =
आ गया । श्लोकार्थ - और तब अर्थात् सम्मेदशिखर सिद्ध क्षेत्र पर पहुंच जाने पर
राजा ने विधिपूर्वक सिद्धपर्वत की पूजा की एवं अत्यधिक हर्ष के साथ उसकी तीन परिक्रमायें या प्रदक्षिणायें की एवं अपने
घर आ गया। रत्नदत्तस्तत्प्रभावात् तस्य पुत्रो बभूव हि।
तस्यैव वंशे समभून्मघवान् चक्रवर्त्यपि 1७४।। अन्वयार्थ - तत्प्रभावात् = सम्मेदशिखर की यात्रा के प्रमाव से, हि = ही.
तस्य = उस राजा के. रत्नदत्तः = रत्नदत्त नामक, पुत्रः = पुत्र, बभूव = हुआ, तस्य = उसके, वंशे = कुल में, मघवान् = मघवान् नामक, चक्रवर्ती = चक्रवर्ती, अपि = मी, समभूत्
= उत्पन्न हुआ! श्लोकार्थ - सम्मेदशिखर की उस तीर्थयात्रा के प्रभाव से ही उस राजा
के रत्नदत्त नामक पुत्र हुआ और उसके वंश में मघवा चक्रवर्ती
मी उत्पन्न हुआ। तेनापि संघसो यात्रा सम्मेदस्य कृता शुभा । द्वात्रिंशल्लक्षसङ्घन विलाससुखदायिनी ।७५।।