________________
६४
श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य काले = काल, गते = बीत जाने पर, तत्र काले = उस काल
में, श्रीशम्भवप्रमुः = श्री संभवनाथ भगवान्, अभूत् = हुये थे। श्लोकार्थ - इसके बाद कधि कहता कि अजितनाय सीकर के समय
से तेतीस करोड़ सागर प्रमाण काल और बीत जाने पर जो
काल था उस काल में श्री संभवनाथ तीर्थङ्कर हुये थे। षष्टिलक्षोक्तपूर्वायुस्तस्य देवस्य धाभवत् ।
चतुःशतधनुर्मानं कायोत्सेधः प्रकीर्तितः ।।३६।। अन्वयार्थ - तस्य = उन, देवस्य = संभवनाथ प्रमु की, षष्टिलक्षोक्तपूर्वायुः
= साठ लाख पूर्व तक की आयु, अभवत् = थी, च = और, चतुःशतधनुः = चार सौ धनुष, मानं = प्रमाणप, कायोत्सेधः =
शरीर की ऊँचाई, प्रकीर्तितः = प्रसिद्ध की गयी है। श्लोकार्थ - उन संभवनाथ प्रभु की आयु साठ लाख पूर्व की तथा शरीर
की ऊँचाई चार सौ धनुष प्रमाण थी। पंचोत्तरदशप्रोक्त लक्ष पूर्व प्रमाणतः ।
कालस्तस्य व्यतीयाय कौमारे तत्कुतूहलात् ।।३७।। अन्वयार्थ - तस्य = उन प्रभु का, पंचोत्तरदशप्रोक्तलक्षपूर्दप्रमाणतः =
पन्द्रह लाख पूर्व प्रमाण, कालः = समय, कौमारे = कुमारावस्था में. (अभवत् = हो गया था). तत् = उसको, कुतुहलात् = कौतुहल से अर्थात् खेल-खेल में सरलता से, व्यतीयाय = बिताकर, (तेन - उसने, राज्यलक्ष्मी = राज्य सम्पदा, अधिगता
= प्राप्त की)। __ श्लोकार्थ - श्री संभवनाथ का पन्द्रह लाख पूर्व का काल कुमारावस्था में
बीता उसके बाद उन्होंने राज्यलक्ष्मी प्राप्त की। ततो राजा बभूवासौ राज्ये तस्य सुधर्मिणः ।
चतुरुत्तरचत्वारिंशल्लक्षपूर्या भोगतो गताः ।३८।। __ अन्वयार्थ - ततः = उसके बाद, असौ = वह, राजा = राजा, बभूव = हुये,
राज्ये = राज्य में या राजकाज करने में, तस्य = उस, सुधर्मिणः