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तृतीया
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वराणि = श्रेष्ठ सुन्दर, कमलानि = कमल, अमवन् प्रतिवारिजं - प्रत्येक कमल पर, अष्टोत्तरसहस्रोक्तपत्राणि एक हजार आठ कमल के पत्ते अर्थात् पंखुड़ियाँ, च = और, प्रतिपत्रं = प्रत्येक पत्र या पंखुडी पर सुरीणिः = एक देवाङ्गना, विश्वमनोहरं सभी को अच्छा लगने वाला, नृत्यं
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नृत्य, (अकरोत् = करती थी), एवं = इस प्रकार, हस्तिमुखोपरि = हाथी के मुख पर सप्तविंशतिकोट्युक्ताः = सत्ताईस करोड़ देवानायें, नृत्यकोविदैः = नृत्यविद्या के जानकारों द्वारा व्यञ्जकैः व्यञ्जित होने योग्य अर्थात् हाव भावों सहित अयसञ्चालनों द्वारा नृत्यन्ति स्म नाच करती थीं एवं = ऐसे ऐरावतं ऐरावत हाथी को समुत्सृज्य = । अच्छी तरह से रचकर, विमानगैः = विमान से जाने वाले, अशेषैः बचे हुये सभी, सुरैः = देवताओं से, संयुक्तः = सहित - साथ होता हुआ, श्रावस्तीनगरं श्रावस्ती नगर में, ययौ = गया। श्लोकार्थ ऐरावत हाथी के प्रत्येक मुख में आठ-आठ दांत होते हैं। प्रत्येक दांत पर एक-एक सरोवर होता हैं। प्रत्येक सरोवर में सवा सौ श्वेत कमलिनियाँ होती हैं प्रत्येक कमलिनी पर पच्चीस-पच्चीस सुन्दर कमल होते हैं। एक कमल में एक हजार आठ पंखुड़ियाँ होती हैं। तथा प्रत्येक पंखुड़ी पर एक-एक देवाङ्गना मनोहर नृत्य करती है। इस प्रकार ऐरावत हाथी के मुख पर सत्ताईस करोड़ देवाङ्गनायें संगीत पारखियों से समझे जाने योग्य हाव-विलासों - अङ्गसंचालनों सहित नृत्य करती हैं ।
ऐसे ऐरावत हाथी का निर्माण कर इन्द्र अवशिष्ट विमान से गमन करने वाले सभी देवों के साथ श्रावस्ती नगर में आया।
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त्रिः परिक्रम्य तद्भूयः प्रभुं संग्राह्य युक्तितः ।
सुमेरुपर्वतं गत्वा चक्रे अष्टोत्तरशतैः कुंभैः पूर्णः देवमस्तोषयद्भक्त्या
जन्माभिषेचनम् ||२६|| क्षोरोदवारिभिः । कानकैरतिविस्मितः ।। ३० ।।
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थे ।
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