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श्री सम्मेदशिखर माहात्म्य
श्लोकार्थ श्रावस्तीनगर में अहमिन्द्र का आगमन अवधिज्ञान से जानकर
सुरेन्द्र ने उस नगर में रत्नों की वर्षा करने के लिये कुबेर को आदेश दिया।
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षण्मासं तेन संहृष्ट्या रत्नवृष्टिस्तथा कृता । सप्रधानः स भूपालः सपौरो विस्मयं ययौ || १६ ||
अन्ययार्थ तेन = कुबेर द्वारा, संहृष्टया = अत्यंत हर्ष के साथ, षण्मासं छह मास तक तथा = वैसे ही, रत्नवृष्टिः = रत्नों की वर्षा, कृता = की. (यथा = जैसे), सप्रधानः प्रधान पुरुषों सहित, सपौरो = प्रजाजनों सहित, स= वह, भूपालः = जितारि राजा, विस्मयं = आश्चर्य को ययौ = प्राप्त हो गया ।
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श्लोकार्थ इन्द्र की आज्ञा से प्रसन्नता सहित कुबेर ने उस नगर में छह
मास तक वैसे ही रत्न वर्षा की जैसे राजा जितारि, प्रजा और प्रधान पुरुष मंत्री आदि विस्मय को प्राप्त हुये ।
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एकदा फाल्गुणे मासे शुक्लपक्षे मृगाङ्कभे । सा देवी षोडशस्वप्नावसाने गजमास्यगम् ।।१६।। दृष्ट्वाद्भुतयुता प्रातः प्रियवक्त्राच्च तत्फलम् । श्रुत्वा प्रमुदिता गर्भे चाहमिन्द्रं दधार सा ||२०|| अन्वयार्थ एकदा = एक बार, फाल्गुणे = फाल्गुन मासे - मास में, शुक्लपक्षे = शुक्लपक्ष में, मृगाङ्कभे = चन्द्र नक्षत्र में, षोडशस्वप्नावसाने = सोलह स्वप्नों के समाप्त होने पर, सा देवी = उस रानी ने आस्यगम् अपने मुख में जाते हुये, गजम् = हाथी को, दृष्ट्वा = देखकर, अद्भुतयुता आश्चर्य से भरी हुयी, (अभूत् हो गई), च = और, प्रातः सवेरे, प्रियवक्त्रात् = प्रियतम के मुख से तत्फलम् = उनके फल को, श्रुत्वा = सुनकर, प्रमुदिता = प्रसन्न हो गयी । च = सा = उसने, गर्भे गर्भ में, अहमिन्द्रं अहमिन्द्र को, दधार = धारण किया 1
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