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________________ + ॥ + कन्यारा पदार्थ नाही है आत्माहीका परिणाम है। तातें आरमाही है, तातें सम्यग्दर्शन है सोही , + आत्मा है, अन्य नाहीं है। ___ भावार्थ-इहां एता और जानना, जो नय है ते श्रुतप्रमाणके अंश हैं यातें यह शुद्धन्य है सोऊ श्रुतप्रमाणहीका अंश है। अर श्रुतप्रमाण है सो परोक्षप्रमाण है, वस्तुकू सर्वज्ञके आगमके वचनते जान्या है। सो यह शुध्दनय है सो यह परोक्ष सर्वव्यनित न्यारा असाधारण चैतन्यधर्म सर्व आत्माकी पर्यायनिवि व्यात पूर्ण चैतन्य केवलज्ञानरूप सर्व लोकालोकका जाननहारा दिखावै । तिसकू यह व्यवहारी छद्मस्थजीव आगमकू प्रमाण करि पूर्ण आत्माकाश्रद्धान करै सोही श्रद्धान निश्चयसम्यग्दर्शन है। जेते व्यवहारन्यके विषयभूत जीवादिकभेदरूप तत्वनिका केवल , श्रद्धान रहै, तत निश्चयसभ्यग्दर्शन नाही, यातें आचार्य कहे हैं, जो इस तत्त्वनिकी सन्तति परि-.. पाटीकू छोडिकरि यह शुध्दनयका विषयभूत एक आत्मा है सोही हमकू प्राप्त होऊ अन्य किछु न 卐 चाहे हैं। यह वीतराग अवस्थाकी प्रार्थना है, किछु नयपक्ष नाहीं है। जो सर्वथानयनिका पक्ष पात होऊही करे तो मिथ्यात्वही है। इहां कोई पूछे यह अनुभवमैं चैतन्यमात्र तो नास्तिकविना 5 सर्वही मतके आत्माकू माने हैं, सो एताही श्रद्धानकू सम्यक्त्व कहिये तो सर्वहीकै सम्यक्त्व ठहरै ... तातें सर्वज्ञकी वाणीम जैसा पूर्ण आत्माका स्वरूप कया है तैसा श्रद्धान भये निश्चयसम्यक्त्व होय है। अब तीसरा काव्यमें कहे हैं जो सूत्रकार आचार्य ऐसे कहे हैं जो याके आगे शुद्धनयके फ़ प, आधीन जो सर्वद्रव्यनितें भिन्न आत्मज्योति है सो प्रगट होय है। + + ॥ + + अतः शुद्धनयाय, प्रत्यग्ज्योतिश्वकास्ति तद् । नयतवगतत्वेऽपि, यदेकत्वं न मुञ्चति ॥३॥ अर्थ-इहातें आगें जो शुद्धनयके आधीन भिन्न आत्मज्योति है सो प्रगट होय है। जो नव-卐 तत्त्वमें गत होय रहा है, तोऊ आपना एकपणाकू नाहीं छोडे है। + 卐 +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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