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________________ 5 5 + 5 ॐ + अवस्थातें अन्य अवस्थारूप होना वस्तूका पयायस्वभाव है, याही परिणामी कहिये है। सो ऐसें परिणामी वस्तूकै अन्यके निमित्तते परिणाम भया ताकू कहैं, यह अन्यने कीया सो यह । व्यवहारनयकी दृष्टिकरि कहिये है । बहुरि निश्चयतें तौ अन्य किछू किया है नाहीं, परिणाम भया; सो आपहीका भया, अन्यने तौ तामें किछू भी ल्याय धरथा नाही ऐसें जानना। आगे इस निश्चयव्यवहारनयके कथनळू दृष्टांतकरि स्पष्ट कहे हैं । गाथा जह सेटिया दु ण परस्स सेटिया सेटिया य सा होदि। तह जाणगो दु ण परस्स जाणगो जाणगो सोदु ॥४८॥ जह सेटिया दु ण परस्त सेटिया सेटिया य सा होदि। तह पस्सगो दु ण परस्स पस्सगो पस्सगो सोदु ॥४९॥ जह सेटिया दु ण परस्स सेटिया सेटिया दु सा होदि। तह संजदो दु ण परस्स संजदो संजदो सोदु ॥५०॥ जह सेटिया दु ण परस्स सेटिया सेटिया दु सा होदि । तह दसणं दुणे परस्स देसणं दंसणं तंतु ॥५१॥ एवं तु णिच्छयणयस्स भासियं णाणदंसणचरित्ते। सुणु ववहारणयस्सय वत्तव्वं से समासेण ॥५२॥ जह परदव्वं सेटदि हु सेटिया अप्पणो सहावेण । तह परदव्वं जाणदि णादा विसएण भावेण ॥५३॥ ॐ $ } } } } } 55 55 5 5 5: ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ Pan
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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