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________________ i - + + 9 1- अन्य वस्तुविर्षे प्रवेश नाहीं करे है, वाहरि ही लोटे है। जातें समस्त ही वस्तु अपने अपने विभाव। वि नियमरूप हैं ऐसें मानिये है। सो आचार्य कहे हैं-जो ऐसे होते भी यह जीव अपने ॥ स्वभावतें चलायमान होय, आकुल हुवा मोही भया संता, क्यों क्लेशरूप होय है। भावार्थ-वस्तुस्वभाव तौ नियमरूप ऐसा है, जो काहू वस्तूमो कोई मिले नाहीं अर यही 卐प्राणी अपने विभावसू चलायमान होय व्याकुल-लशरूप होय है, सो यह बडा अज्ञान है। फेरि इस ही अर्थकू दृढ करनेकू कहे हैं। रथोद्धताछन्दः वस्तु चैकमिह नान्यवस्तुनो येन तेन खलु वस्तु घस्तु तत् । निश्चयोऽयमपरो परस्य कः किं करोति हि वहिल उन्नपि ॥२०॥ 卐 अर्थ-जाते यालोकविर्षे एक वस्तु है सो अन्य वस्तुका नाहीं है, तिस ही कारणकरि वस्तु ._ है सो वस्तु है, ऐसे न होय तो वस्तुका वस्तुपणा न ठहरै, यह निश्चय है। ऐसे होते अन्य वस्तु है सो अन्यवस्तुके बाहरि लोटे है, तोऊ ताका कहा करे? किछू भी न करि सके है। ___भावार्थ-वस्तूका स्वभाव तो ऐसा है, जो अन्य कोई वस्तु पलटाय न सके, तब अन्यके "अन्य कहा किया ? किछू भी न किया । जैसे चेतन बस्तुके एक क्षेत्रावगाहरूप पुद्गल तिष्ठे है, म मतौऊ चेतनकू जडकरि आपरूप तौ परिणमाय सक्या नाहीं, तब चेतनका कहा किया? किछु .. भी न किया, यह निश्चयनयका मत है । बहुरि निमित्तनैमित्तिकभावकरि अन्य वस्तुके परिणाम . 'होय है, सो भी तिस वस्तुहीका है, अन्यका कहना व्यवहार है, सो ही कहे हैं रथोद्धताछन्दः यत्तु वस्तु कुरुतेऽन्यवस्तुनः किञ्चनापि परिणामिनः स्वयम् । व्यावहारिकदृशैव तन्मतं नान्यदस्ति किमपीह निश्चयात् ॥२१॥ भ अर्थ-जो कोई वस्तु अन्यवस्तुकै किछू करे है ऐसा कहिये है सो वस्तु आप परिणामी है,卐 5 5 + +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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