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________________ E 卐 + + + परिणामस्वरूप कर्म करे है, बहरि दुःखस्वरूप अपना परिणामरूप चेष्टामय कर्मके फलकू . भोगवे है, तिनि परिणामनिकू अपना एक ही द्रव्यपणाकरि अनन्य होते संते तिनितें तन्मय होय 5 है, तातें तिनिविर्षे परिणाम परिणामिभावकरि कर्ताकर्मपणाका अर भोक्ताभोग्यपणाका निश्चय : है। तैसा आत्मा भी करनेका इच्छक भया संता अपना उपयोगकी तथा प्रदेशनिकी चेष्टारूप "अपना परिणामस्वरूप कर्म• करे है, अर दुःख है लक्षण जाका ऐसा अपने परिणामरूप चेष्टारूप कर्मका फल• भोगवे है, तिनि परिणामनिके अपना एक ही द्रव्यपणाकरि अन्यपणा न . होता संता तिनितें तन्मय होय है । तातें तिनि परिणाम निविर्षे परिणाम परिणामी भावकरि 卐कर्ताकर्मपणाका अरभोक्ताभोग्यपणाका निश्चय है। ननु परिणाम एव किल कर्म विनिश्चयतः स भवति नापरस्य परिणामिन एन भनेर । न भवति क शून्यमिह कर्म न चैकतया स्थितिरिह यस्तुनो भवतु कई तदेव ताः ॥८!! म अर्थ-ननु कहिये अहो मुनि हौ, तुम यह निश्चय करौ, जो यह प्रगटपणे परिणाम है, सो र "तौ निश्चयतें कर्म है। बहुरि सो परिणाम अपना आश्रय जो परिणारी द्रव्य, ताहोका होय है, 卐 अन्यका नाहीं होय है । जाते परिणाम हैं ते अपने अपने द्रव्यके आश्रय हैं, अन्यके परिणामका ॥ ... अन्य आश्रय होय नाहीं। बहुरि जो कर्म है, सो कर्ता विना होय नाहीं । बहारे वस्तु है सो द्रव्यकपर्यायस्वरूप है । तातें ताकी एक अवस्थारूप कूटस्थस्थिति आदि होय नाही, सर्वथा नित्यपणा : बाधासहित है । तातें अपना परिणामरूप कर्मका आप ही कर्ता है, यह निश्चय सिद्धांत है । अब इस ही अर्थक समर्थन कलशरूप काव्य कहे हैं। पृथ्वीछन्दः बहिलुठति यद्यपि स्फुटदनन्तशक्तिः स्वयं तथाऽप्यपरवस्तुनो विशति नान्यवस्वन्तरम् | स्वभावनियतं यतः सकलमेव वस्त्विष्यते स्वभावचलनाकुल: किमिह मोहितः क्लिश्यते ।।१६॥ अर्थ-ययपि वस्तु है सो आप प्रकाशरूप अनंतशक्तिस्वरूप है, तथापि अन्य वस्तु है, सो + + + + 55 फ़ +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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