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________________ म ईश्वरकू कर्ता माने है तिनि मुनिनिने आस्माकू कर्ता मान्या ऐसे दोऊकी माननी समान भई । "तातें जो लौकिकजनके सो मोक्ष नाही, तैसें तिस मुनिनिके मोक्ष नहीं का होगा सो कार्य के फलकू भोगवेहीगा जो फल भोगवेगा ताके काहेका मोक्ष ? आगे कहे हैं, जो परद्रव्यका अर ..पा ..आस्माका किछूभी संबंध नाही है, तातें कर्ताकर्मसंबंधभी नाही है, ऐसें श्लोकमें कहे हैं। नास्ति सर्वोऽपि सम्बन्धः परद्रव्यात्मतत्त्योः। कर्तृकर्मत्यसम्बन्धाभावे सत्कता कुतः ॥८॥ म अर्थ-परद्रव्यका अर आत्मतत्त्वका सर्व ही संबंध नाही है, ऐसे कर्ताकर्मपणाका संबंधका अभावकू होते परद्रव्यका कर्तापणा काहेते होय ? | भावार्थ-परद्रव्यका अर आत्माका किछूभी संबंध नाही, तब कर्ताकर्मसंबंध काहे होय ? ' ऐसे होते कापणा कहेकू होय ? आगै व्यवहारनयके वचनकरि कहिये हैं, जो परद्रव्य मेरा है "सो जे व्यवहारहीकू निश्चय माने हैं, ते अज्ञानत माने हैं, याकू दृष्टांत पूर्वक कहे हैं । गाथा ववहारभासिदेण दु परदव्वं मम भणंति विदिदत्था । जाणंति णिच्छयेण दु णय इह परमाणुमित्त मम किंचि ॥१७॥ जह कोवि णरो जंपदि अह्माणं गामविसयपुररहें। गय होंति ताणि तस्स दु भणदिय मोहेण सो अप्पा ॥१८॥ एमेव मिच्छदिट्ठी णाणी णिस्संसयं हवदि एसो। जो परदव्वं मम इदि जाणतो अप्पयं कुगदि ॥१९॥ तह्मा ण मेति गच्चा दोहं एदाण कत्ति ववसाओ। परदब्वे जाणंतो जाणे जो दिहिरहिदाणं ॥२०॥
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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