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________________ ॥ 5 卐卐卐卐म: प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । बहुरि अशुभ वा शुभ स्पर्श है सो सोकू ऐसें नाहीं कहे है ... - जो तू मोकू स्पर्शि । बहुरि स्पर्शन इंद्रियके विषयमें आया जो स्पर्श ताकू सो आत्मा भी ग्रहण क 卐 करनेकू अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । बहुरि अशुभ वा शुभ द्रव्यका गुण है सो.. तो ऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू जाणि । बहुरि बुद्धिके विषयमें आया जो गुण ताकू सो। 卐 आत्मा भी ग्रहण करने अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । वहुरि अशुभ वा शुभ द्रव्य है सो तोकू ऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू जाणि । बहुरि बुद्धीके विषयमें आया जो द्रव्य ताकू आत्मा भी ग्रहण करनेकू अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । यह मूढ जीव है। सो ऐसें यहु जाणि करि उपशमभावकू नाहीं प्राप्त होय है। अर परके ग्रहण करनेकू मन करें। है । जाते आप कल्याणरूप बुद्धि जो सम्यग्ज्ञान ताकू नाहीं प्राप्त भया है ! 卐 टीका-तहां प्रथम दृष्टांत कहे हैं । जैसे बायपदार्थ घटा पर आदिक है, सो जैसे कोई देव... दत्तनामा पुरुष यज्ञदत्तनामा पुरुपकू हाथ पकडि कहे, तैसे दीपककू अपने प्रकाशने विर्षे नाही: प्रेरणा करै है, जो तृ मोकप्रकाशि । बहुरि दीपक है सो भी अपने स्थानकळू छोडि-जैसे1- चुवक पापाणवू लोहकी सूई अपना स्थानक छोड़ि जाय लगैतैसें नाहीं जाय लगे है। तो। कहा है ? वस्तुका स्वभावके परकरि उपजाबने अशक्यपणा है तथा परकू उपजाबनेका अस.. +मर्थपणा है । बहुरि घटपटादिक समीप नाही होतें दीपक प्रकाशरूप है। तैसें ही तिनिक समीप होतें भी अपना स्वरूप ही करि प्रकाशरूप है। बहुरि अपना स्वरूप ही करि प्रकाशरूप, 卐 होता दीपकके वस्तुस्वभावहीते विचित्र परिणती प्राप्त होता जो मनोहर अमनोहर । __ घटपटादिपदार्थ सो किंचितमात्र भी विकियाक अर्थी नाही कल्पिये है। तैसा ही दार्टीत है।। 卐 जो बाह्य पदार्थ शब्द रूप, गंध, रस, स्पर्श गुण द्रव्य हैं, ते जैसे देवदत्तनामा पुरुष यज्ञदत्तनामा पुरुषक हाथ पकडि कहै, तैसें नाहीं कहे हैं। मोकू सुणि, मोकू देखि, मोकू सघि, मोकू आस्वादि, मोकू स्पशि, मोकू जाणि ऐसें अपने ज्ञानकरि आत्माकू नाही रे हैं। बहुरि।
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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