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________________ 55 ज लोकश्रमणानामेवं सिद्धांतं प्रति न दृश्यते विशेषः । लोकस्य करोति विष्णुः श्रमणानामप्यान्मा करोति ॥१५॥ एवं न कोऽपि मोक्षो दृश्यते लोकश्रमणानां द्वयेषां । नित्यं कुर्वतां सदैव मनुजान् सुरान् लोकान् ॥१६॥ आत्मख्याति:-ये त्वात्मानं कतारमेव पश्यंति ने लोकोत्तरिका अपि न लौकिकतामतिवर्तन्ते । लौकिकानां । ॐ परमात्मा विष्णुः सुरनारकादिकार्याणि करोति, तेषां तु स्वात्मा तानि करोति इत्यपसिद्धांतस्य समत्वात् । ततस्तेषामात्मनो नित्यक त्याभ्युपगमात्-लौकिकानामिव लोकोतरिकाणामपि नास्ति मोक्षः । अर्थ देव नारक सिव मनुष्यवाणी सिनि लोके तो विष्णु करे है ऐसी मान्य है। 5 बहुरि श्रमण जे यति तिनिकभी ऐसी मान्य होय, जो षट्कायके जीवनिकू आत्मा करे है। तो "लोकका अर श्रमणनिका दोऊनिका एक सिद्धांत ठहरथा, किछू विशेष न देखिये है। जातें लौकिकके विष्णा करे है, श्रमणनिके आत्मा करे है ऐसे दोऊ कतोकी माननेमें समान भये । ऐसें लोकके अर श्रमणनिके दोऊनिके कोईभी मोक्ष नाही देखिये है। जाते देव मनुष्य असुर ऊसहित लोकनिकू जीवनिकू नित्य दोऊ करते संते प्रवर्ते हैं, तिनिकै काहेका मोक्ष होय ? .. टीका-जे पुरुष आत्माक कर्ताही माने हैं, ते लोकोत्तरिक हैं-लोकतें दरिवर्ति बाद्य भये हैं। "तौऊ लौकिकपणाकू नाही उल्लंघि वर्ते हैं। जातें लौकिकजननिकै तौ परमात्मा विष्या सुरनारक आदि कायनिकू करे हैं। बहुरि ते लोकवाह्य भये ऐसे मुनि तिनिके अपना आत्मा तिनि के "सुरनारक आदिकू करे हैं ऐसे अपसिद्धांत कहिये अन्यथा माननेका दोऊकै समानपणा है। जताते ते आत्माकू नित्य कर्तापणाके माननेते लौकिकजनकीज्यों लोकोत्तरिक मुनि हैं तोऊ ..लौकिकजन ही हैं, तिनिकै मोक्ष नाहीं होय है। भावार्थ-जे आत्माकू कर्ता माने हैं ते मुनि होय तोऊ लौकिकजनसारिखेही हैं । जातें लोक +5.
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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