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________________ 卐 卐 करि तौ सर्व ही जीव ज्ञानी हैं बहुरि विशेष अपेक्षा ही लीजिये तो जहां तांई कञ्चिन्मात्र भी अज्ञान 卐 रहै, जे ज्ञानी न कया जाय, जैसे सिद्धांतमें भाव लगाये है हांता केवलज्ञान न उपजै, तेतें 5 शा 5 बारमा गुणस्थानताई अज्ञानभाव लगाया है । तातैं इहां ज्ञानी अज्ञानी कहना सम्यक्त्वभिध्याव हकी अपेक्षा जानना | आगे जे सर्वथा एकांतके आशय आत्माकू कती हो माने हैं, तिनिक 卐 निषेधे हैं, ताकी सूचनिकाका श्लोक है । 卐 अनुष्टुप्छन्दः ये तु कर्त्तारमात्मानं पश्यन्ति तमसा तताः । सामान्यजनवत्तेषां न भोसोऽमुमुक्षताम् ॥ ७ ॥ 卐 अर्थ - ये पुरुष अज्ञान अंधकारकरि आच्छादे हुये आत्माकू कर्ताही माने हैं, ते मोक्षकू चाहते हैं, तौऊ तिनिकै सामान्यजन - लौकिकजनकीज्यों मोक्ष नाहीं होय है | अब इस अर्थ फफफफफफफ फ्र गाथाकर कहे हैं | गाथा--- 卐 लोगस्स कुदि विणू सुरणारयतिरियमाणु से सत्ते । समणाणंपिय अप्पा जदि कुव्वदि छविहे काए ॥ १४ ॥ लोगसमणामेवं सिद्धतं पाडे ण दिस्सदि विसेसो । लोगस्स कुदि विगहू समणा अप्पओ कुणदि ॥ १५ ॥ 卐 फ्र एवं ण कवि मुक्खो दीसइ दुगहंपि समणलोयाणं । णिचं कुव्वंताणं सदेव मणुआसुरे लोगे ॥ १६ ॥ लोकस्य करोति विष्णुः सुरनारकतिर्यङ्मानुषान् सवान् । श्रमणानामप्यात्मा यदि करोति षड्विधान् कायान् ॥१४॥ பிபிபிபிமிககககககக फ्र சு 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐 卐: फ्र
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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