SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ + + 乐乐 乐乐 $ $ $$ $$$ $ प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । बहुरि अगभ वा शुभ स्पर्श है सो सोकू ऐसें नाहीं कहे है जो तू मोकू स्पर्शि । बहुरि स्पर्शन इंद्रियके विषयमें आया जो स्पर्श ता. सो आत्मा भी ग्रहण के 卐 करनेकू अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । बहुरि अशुभ वा शुभ द्रव्यका गुण है सो तोकूऐसें नाहीं कहे है, जो तू मोकू जाणि । बहुरि बुद्धि के विषयमें आया जो गुण तार्क सो।। आत्मा भी ग्रहण करने अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है । बहुरि अशुभ वा शुभ द्रव्य है सो तोकू ऐसें नाहीं कहे हैं, जो तू मोकू जाणि । बहुरि बुद्धीके विषयमें आया जो द्रव्य" ताकू आत्मा भी ग्रहण करने अपना प्रदेशकू छोडि नाहीं प्राप्त होय है। यह मूढ जीव है + सो ऐसे यह जाणि करि उपशमभावकू नाहीं प्राप्त होय है। अर परके ग्रहण करनेकू मन करे। है। जातें आप कल्याणरूप बुद्धि जो सम्यग्ज्ञान ताकू नाहीं प्राप्त भया है। टीका-तहां प्रथम दृष्टांत कहे हैं। जैसे वाह्यपदार्थ घट पट आदिक हैं, सो जैसे कोई देव-... दत्तनामा पुरुष यज्ञदत्तनामा पुरुपकू हाथ पकडि कहे, तैसे दीपककू अपने प्रकाशने विर्षे नाही. प्रेरणा करै है, जो तू मोकू प्रकाशि । बहुरि दीपक है सो भी अपने स्थानककू छोडि-जैसें ।। चुंबक पाषाणकू लोहकी सूई अपना स्थानककू छोडि जाय लगैसें नाहीं जाय लगे है। तो। कहा है ? वस्तुका स्वभावके परकरि उपजावने अशक्यपणा है तथा परक उपजावनेका असमर्थपणा है। बहुरि घटपटादिक समीप नाहीं होते दीपक प्रकाशरूप है। तैसें ही तिनि । समीप होतें भी अपना स्वरूप ही करि प्रकाशरूप है। बहुरि अपना स्वरूप ही करि प्रकाशरूपम 卐 होता दीपककै वस्तुस्वभावहीते विचित्र परिणतो प्राप्त होता जो मनोहर अमनोहर .. घटपटादिपदार्थ सो किंचित्मात्र भी विकियाके अर्थी नाही कलिये है। तैसा ही दाति है।। 9 जो बाह्य पदार्थ शब्द रूप, गंध, रस, स्पर्श गुण द्रव्य हैं, ते जैसें देवदत्तनामा पुरुष यज्ञदत्तनाना। पुरुषक हाथ पकडि कहै, तैसें नाहीं कहे हैं। मोकू सुणि, मोकू देखि, मोकू सूघि, मोकू" " आस्वादि, मोकू स्पर्शि, मोकू जाणि ऐसे अपने ज्ञानकरि आत्माकू नाहीं प्रेरै हैं। बहुरि卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy