SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फफफफफफफफफफफ 卐 नय फ्र 卐 卐 -- टीका - निश्चयकरि जे ए अज्ञानीके पुद्गलकर्म हैं निमित्त जिनिकुं ऐसे राग द्वेष मोह आदि भावनिका कर्ता होता संता कर्मनिकरि बंधे ही हैं, ऐसा परिणाम है; ते ही फेरि राग द्वेष मोह आदि परिणामकूं निमित्त जो पुद्गलकर्म, ताके बंधके कारण होय हैं । भावार्थ - अज्ञानी के कर्व के निमित्त राग द्वेष मोह आदिक परिणाम होय हैं, ते फेरि आगामी कर्मबंधके कारण होय हैं। आगे फेरि पूछे है, ऐसें है, जो अज्ञानीके रागादिक फेरि कर्मबंधके कारण हैं, तो आत्मा रागादिकका अकारक ही है, ऐसें कैसें कया है ? ताका समाधान कहे हैं । 卐 फ गाथा फफफफफफफफफफफफफ 卐 卐 राम िय दोसी य कसायकम्मेसु चेव जे भावा । ते मम दु परिणतो रागादी बंधदे चेदा ||४६ ॥ रागे च दोषे च कषायकर्मसु चैव ये भावाः । तन्मम तु परिणममानो रागादीन् बध्नाति चेतयिता ॥ ४६ ॥ आत्मख्यातिः - य इमे किलाज्ञानिनः पुद्गलकर्मनिमित्ता रागद्वेषमोहादिपरिणामास्त एवं भूयो रागद्वेषमोहादिपरिणामनिमित्तस्य पुद्गलकर्मणो बंधहेतुरिति । कथमात्मा रामादीनामकारकः १ इति वेद 卐 अर्थ - राम बहुरि द्वेष बहुरि कषाय कर्म इनिक्कू होते संते जे भाव होंय तिनिकरि परिणमता संता, आत्मा रागादिकनिकूं बांधे है । अपडिक्कम दुविहं अपच्चक्खाणं तहेब विष्णेयं । एदेवदेसेा दु अकारगो वणिदो वेदा ॥४७॥ अपडिकमणं दुविहं दव्वे भावे अपच्चखापि । एदेणुवदेसेण दु अकारगो वणिदो वेदा ॥ ४८ ॥ 卐 ४२
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy