________________
फफफफफफफफफफफफ
卐
अर्थ - अज्ञानी है सो ऐसा अपना वस्तुस्वभावकूं नाहीं जाने है, तिस कारणकरि सो अज्ञानी रागादिकभावनिकूं आपके करे है, यातै तिनिका कारक होय हैं । अब इस अर्थ की गाथा
फ कहे हैं। गाथा
卐
卐
राय दोसहमि य कसायकम्मेसु चेव जे भावा ।
5
तेहिं दु परिणममाणो रायादी बंधदि पुणोवि ॥ ४५ ॥ रागे दोषे च कषायकर्मसु चैव ये भावाः ।
卐
तैस्तु परिणममानों रागादीन् बभाति पुनरपि ॥४५॥
आत्मख्यातिः—यथोक्तं वस्तुस्वभावमजानंस्त्वज्ञानी शुद्धस्वभावादासंसारं प्रच्युत एव । ततः कर्मविपाकप्रभवे राम
卐
इषमोहादिभावैः परिणममानोऽज्ञानी रागद्वेषमोहादिभावानां कर्ता भवन् बध्यत एवेति प्रतिनियमः । ततः स्थित-5 फ मेतत्
अर्थ - राग बहुरि द्वेष बहुरि कषायकर्म इनिकू होते संते जे भाव होय हैं, तिनिकरि परि 5 मता संता, अज्ञानी रामादिककूं फेरि फेरि बांधे है ।
टीका - जैसा कया तैसा वस्तुका स्वभावकू नाहीं जानता संता अज्ञानी है सो अपना शुद्ध
卐
卐
फ्रफ़ फ्र फफफफफफ
卐
स्वभावतें अनादिसंसारतें लगाय च्युत ही हैं, छूटि रा है तातें कर्मके उदयकरि भये जे राग
5 द्वेष मोहादिक भाव, तिनिकरि परिणमता संता, अज्ञानी राग द्वेष मोहादि भावनिका कर्ता होता संता कर्मनिकरि बंधे ही है ऐसा नियम है ।
卐
卐
भावार्थ - अज्ञानी वस्तूका स्वभाव तौ यथार्थ जाने नाहीं अर कर्मका उदयकरि जैसा भाव फ
४२५
होय, तिस आपा जानि परिणमें, तब तिनिका कर्ता भया संता आगामी फेरि फेरि कर्म बांधे है यह नियम है। आगे कहे हैं, जो इस हेतु यह ठहरी, ताकी गाथा
५४
5