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________________ ॐ 5 ॐ 5 5 5 5 प्रकाशरूप सामान्य स्वभावकू भेदे नाहीं हैं। तैसे कर्मके पटलका उदयकरि संकोच्या आच्छादित ॥ जो आत्मा, ताके तिस कर्मका विघटन जो क्षयोपशम, ताके अनुसार करि प्रगटपणाकू प्राप्त होताकै ज्ञानके हीनाधिकके भेद हैं, ते तिस आत्माके सामान्यज्ञान स्वभावकू नाही भेदे हैं, तो 卐 कहा करे है ? उलटा प्रकाशरूप प्रगट ही करे हैं। तातें दूर भये हैं समस्त भेव जामें ऐसा - आत्माका स्वभावभूत जो ज्ञान, तिसहीकू एककू आलंबन करना । तिस ज्ञानके आलंबनहोते " निजपदको प्राप्ति होय है । बहुरि तिसहीत भ्रांतीका नाश होय है। बहुरि तिसहीतें आत्माका है लाभ होय है । अनात्माका परिहारकी सिद्धि होय है। ऐसे होतें कर्मका उदयकी मूर्छा नाहीं । होय है, राग द्वेष मोह नाहीं उपजे हैं, राग द्वेष मोह विना फेरि कर्मका आस्रव नाहीं होय है, 卐 आस्रव न होय तब फेरि कर्मकू नाहीं बंधे है, पूर्वे बांधे थे जे कर्म, ते भोगे हुये निर्जराकू प्राप्त ।। होय हैं समस्त कर्मका अभाव होय करि साक्षात् मोक्ष होय है। ऐसा ज्ञानके आलंबनका । 卐 माहाल्य है। ___भावार्थ-ज्ञानमें कर्मके क्षयोपशमके अनुसार भेद भये हैं। ते किछु ज्ञानसामान्यकू तौ के अज्ञानरूप नाहीं करे है। उलटा ज्ञानकुं प्रगट ही करे हैं । तातें भेदनिकू गौण करि एक ज्ञान 'सामान्यका आलंबन ले आत्माकू ध्यावना, यातें सर्वसिद्धि होय है। अब इस अर्थका कलशरूप " काव्य कहे हैं। शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः अच्छाच्छाः स्वयमुच्छलन्ति यदिमाः संवेदनव्यक्तयो निष्फीताखिलभावमण्डलरसप्राग्भारमचा इव । म यस्याभिन्नरसः स एष भगवानेकोऽप्यनेकीमवन् वलगत्युत्कलिकाभिरद्भुतनिधिश्चैतन्यरलाकरः ॥६॥ अर्थ-जिस आत्माकी जो ए संवेदनकी व्यक्ति कहिये अनुभवमें आवत ज्ञानके भेद हैं, ते 卐 निर्मलतें निर्मल आपै आप उछले हैं प्रगट अनुभवमें आवे हैं। कैसी हैं ते? निष्पीत कहिये । .. पीया जो समस्तपदार्थनिका समूहरूप रस, ताका प्राग्भार कहिये बहुतभार ताकरि मान्मांती 5 5 5 5 5 5
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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