SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आभिनिबोधिकश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलं च तद्भवत्येकमेव पदं । स एव परमार्थः, यं लब्ध्वा नितिं याति ॥१२॥ आत्मख्याति:-आत्मा किल परमार्थः तत्तु ज्ञानं, आत्मा च एक एव पदार्थः, ततो ज्ञानमप्येकमेव पदं यदेतत्तु । + झानं नामकं पदं स एप परमाः साक्षाकोदोमायः । गाभिनितोशिकादयो भेदा इदमेक पदमिह भिदंति ? कि त. तेपीदमेबैक पदमभिनंदति । तथाहि--यथात्र सचितुर्धनपटलावगुठितस्य तद्विघटनानुसारेण प्राकट्यमासादयतः प्रकाशा 卐 नातिशयभेदा न तस्य प्रकाशस्वभाव मिदंति । तथा, आत्मनः कर्मपटलादयावगुठितस्य तद्विघटनानुसारेण प्राकट्य- ।। मासादयतो ज्ञानातिशयभेदा न तस्य ज्ञानस्वभावं भिंधुः । किंतु प्रत्युतमभिनंदयुः । ततो निरस्तसमस्तभेदमात्मस्व." 卐 भावभूतं ज्ञानमेवैकमालम्ब्यं तदालंबनादेव भवति पदप्राप्तिः । नश्यति भ्रांतिः। भवत्यात्मलाभः । सिद्धत्यनात्मपरिहारः, न कर्म मूर्छति । न रागद्वेषमोहा उत्प्लवंते । न पुनः कर्म आस्रवति । न पुनः कर्म बध्यते । प्रागबद्ध कर्म, उपभुक्त' । फ्र निर्जीयते । कृत्स्नकर्माभावात् साक्षान्मोक्षी भवति।। म अर्थ-आभिनिबोधिक कहिये मतिज्ञान अर श्रुतज्ञान अवधिज्ञान मनापर्ययज्ञान केवलज्ञान - ए ज्ञानके भेद हैं ते एक ज्ञान ही पदकू प्राप्त हैं-सर्व ही एक ज्ञान नाम है, सो यह परमार्थ फ़ है, शुद्धनयका विषयस्वरूप ज्ञानसामान्य है, तथा यह ही शुद्ध नय है, जिसकू पायकरि आत्मा .. निर्वाण पदकू प्राप्त होय है। 卐 टीका-निश्चय करि आत्मा है सो परमपदार्थ है। सो आत्मा पर्वोक्त ज्ञान है। बहरि - आत्मा है सो एक ही पदार्थ है । तातें ज्ञान भी एक ही पदकू प्राप्त है। बहुरि जो यह ज्ञान नामा एक पद है, सो परमार्थस्वरूप साक्षात् मोक्षका उपाय है । बहुरि मतिज्ञानादि ज्ञानके म के भेद हैं ते तिस ज्ञाननामा एक पदकू भेदरूप नाहीं करे हैं-ज्ञानरूपके भेद नाहीं करे हैं, तो ... एकट्ठा करे हैं, इस एक ज्ञान नामा पदहीकं वृद्धिरूप प्रगट करि प्रकाशे हैं। सो ही कहे हैजैसे इस लोकमें बादलेकरि संकोचरूप आच्छादित जो सूर्य, ताके तिस बादलेके विघटनेके 1------ सोने का दीनाधिकके भेद ते सिमके। $ 5 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy