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________________ 折 $ $ $ 听听听听听听 s s s s अश निर्जराविकारः। दोहा—रागादिका मेटि करि नवे बंध हति संत । पूर्ष उदयों सम रहे नमू निर्जराक्त ।।१।। ___ इहां निर्जरा प्रवेश करे है । भावार्थ-जैसे नृत्य के अखाडे, नृत्य करनेवाला स्वांग बनाय प्रवेश करे है, तेले इहां तत्वनिका नृत्य है। तहां रंगभूमिमैं निर्जराका स्वांगका प्रवेश है, तहां प्रथम ही सर्व स्वांग देखि करि यथार्थ जाननेवाला सम्यग्ज्ञान है ताकू टीकाकार मंगलरूपःजानि + प्रगट करे हैं। शार्दूलविक्रीडितच्छन्दः रागाद्यास्रवरोधतो निजधुरां धृत्वा परः संवरः कर्मागामि समस्तमेव भरतो दाविरुधन स्थितः। ___ प्राग्नद्धं तु तदेव दग्धुमधुना व्याजृम्भते निर्जरा ज्ञानज्योतिरपावृतं न हि यतो रामादिभिमूर्छति ॥१॥ अर्थ--प्रथम तौ उत्कृष्ट संवर है, सो रागादिक जे आस्रव तिनिकै राकनेते, अपनी धुरा जो 5 卐 सामर्थ्यकी हद, ताहि धारिकरि आगामी समस्त ही कर्म, ताकू मूलते दूरी हो रोकता संता .. तिष्ठया । अवे इस संवर भये पहले बंधरूप भया था जो कर्म, ताहि दग्ध करनेकू निर्जरारूप ॐ अग्नि फैले है, सो इस निर्जराके प्रगट होनेते, ज्ञानज्योति है सो आवरण रहित भया संता, फेरि 1- रागादि भावनिकरि मूर्छित नाहीं होय है, सदा निरावरण रहे है। भावार्थ-संवर भये पीछे नवीन कर्म बंधे नाही, अर पूर्वे बंधे थे, ते निर्जरे, तब ज्ञानका ॥ + आवरण दूरि होय, तब ज्ञान ऐसा है, सो फेरि रागादिरूप न परिणमे, सदा प्रकाशरूप रहे । आगे निर्जराका स्वरूप कहे हैं। गाथा उवभोजमिदियेहिं दवाणमचेदणाणमिदराणं । जं कुणदि सम्मदिछी ते सव्वं णिज्जरणिमित्तं ॥१॥ 卐卐 मऊ 卐卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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