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________________ 155+ ++ मन्दाक्रान्ताछन्दः भेदज्ञानोच्छलनकलनाच्छुद्धतचोपलम्भाद्रागग्रामप्रलयकरणाकर्मणां संवरेण । जा बिभ्रत्तोषं परमममलालोकनम्लानमेकं ज्ञानं जाने नियतमुदितं शाश्वतोद्योतमेतत् ॥८॥ अर्थ--यह ज्ञान है सो ज्ञानहीविर्षे निश्चल नियमरूप उदयकू प्राप्त भया । केसे अनुक्रमतें ॥ .. उदय भया ? प्रथम तो भेदज्ञानका उदय होना, ताका अभ्यास भया । बहुरि तिस भेदज्ञानके अभ्यासतें शुद्धतत्त्वका उपलभ भया । बहुरि तिस शुद्धतत्वके उपलभते रागके समूहका प्रलय : किया । बहुरि रागग्रामका प्रलय करनेते आसूक्के रुकनेते कर्मनिका संवर भया । बहुरि कर्मका - न" संवर होने करि पान उत्कृष्ट संतोष भारता संता, शाम प्रगट भया । बहुरि कैसा है ज्ञान ? निर्मल है आलोक कहिये प्रकाश जाका, क्षयोपशमके दोषते मलिनता थी सो अब नाहीं है । बहुरि अम्लान है, रागादिकतें कलुषता थी सो अब नाहीं है, तातें निर्मल है। बहुरि कैसा है ? एक 卐 है, क्षयोपशम करि भेद थे, ते अब नाही है। बहुरि शाश्वता है उद्योत जाका, क्षयोपशमज्ञान, .- क्रमतें होना था, सो अब नाहीं है। ऐसा रंगभूमिमैं संकरका स्वांग प्रवेश भया था ताकं ज्ञान जानि लिया, सो नृत्य करि रंगभूमिते निकसि गया। सवैया तेईसा भेदविज्ञानकला प्रगटै तब शुद्धस्वभाव लहै अपना ही। राग द्वेष विमोह सनही मलि जाय इमै झठ कर्म रुका ही। उज्वल शान प्रकाश कर बहुतोष धरै परमातम माही। यो मुनिराज भली विधि धारत केवल पाय सुखी शिव जाही ॥१॥ ऐसे इस समयसार प्रन्थकी आत्मल्यातिनामा टीकाकी क्चनिकाविर्षे गंचमां संवर अधिकार पूर्ण भया । . इहां ताई गाथा १९२ भई । कलश १३२ भये । 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐 जज ++ :
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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