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________________ फफफफफफफफफफफफ 卐 है । अर आपाकूं अशुद्ध अनुभवता संता अशुद्धही पाये है, ताके आस्रव रुके नाहीं है, संवर नाहीं होय है। अब इस अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं। मालिनी छन्दः यदि कथमपि धारावाहिना बोधनेन ध्रुवमुपलभमानः शुद्धमात्मानमास्ते । तदयमुदयनात्मारामभात्मानमात्मा परपरिणतिरोधाच्छुद्धमेवाभ्युपैति ॥३॥ केन प्रकारेण संवरो भवतीति चेत् अर्थ -- जो आत्मा कोई प्रकार बड़े भाग्य धारावाही ज्ञानकरि निश्चल शुद्ध आत्माकं प्राप्त होता संता तिष्ठे है, तो यह आत्मा, उदय होता है आत्मारूप क्रीडावन जाकै, ऐसा अपना 5 5 आत्माकुं परपरिणति जे राग द्वेष मोह, तिनिका निरोधतें शुद्धहीकूं पावे है । ऐसे शुद्ध आत्माकी प्राप्ती संवर होय है । इहां धारावाही ज्ञान कह्या, ताका अर्थ-यहू जो एक प्रवाहरूप ज्ञान होय, सो धारावाही है। सो याकी दोय रीति है। एक तौ मिथ्याज्ञान वीचिमैं न आवे ऐसा सम्यग्ज्ञान सो धारावाही है । बहुरे दूजा उपयोगका ज्ञेयके उपयुक्त होनेको अपेक्षा है, सो जहां5 तांई एकज्ञेय उपयोग उपयुक्त होय रहे तहां तांई धारावाही कहिये । सो याकी स्थिति अंत- 5 ही है। पीछे विच्छेद होय है । सो जहां जैसी विवक्षा होय, तहां तैसा जानना । श्रेणी चढे तब शुद्ध आत्मास उपयुक्त होय धारावाही होय है। आगे पूछे है, जो, कौन प्रकारकरि 5 संवर होय है ? ताका उत्तर कहे हैं। गाथा 卐 卐 卐 卐 卐 5 फ्रफ़ फफफफ अप्पाणमप्पणोरुंभिदृण दो (सु) पुराणपावजोगेसु । दंसणणाणइ मिठिदो इच्छाविरदो य अहमि ॥७॥ जो सव्वसंगमुको झायदि अप्पाणमप्पणी अप्पा । वि कम्मं णोकम्मं चेदा चिंतेदि एयत्तं ॥ ८ ॥ प्रायु 卐 卐 卐 卐 फ्र 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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