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________________ अर्थ-जैसे सुवर्ण अग्निकरि तप्त भया संता भी अपना तिस सुवर्णभावकू नाहीं छोडे है, .. सेसे झानी कर्मके उदयकरि तप्तायमान भया भी अपना ज्ञानीपणा स्वभावकू नाही छोडे है, ऐसें ज्ञानी जाने है । बहारे अज्ञानी है सो रागही आत्मा जाने है । जाते अज्ञानी अज्ञानरूपए अंधकारतें अवच्छन्न है, व्याप्त है। तातें आत्माका स्वभाव नाहीं जानता संता प्रवर्ते है । टीका-जातें जाके जैसा कह्या तैसा भेदविज्ञान है, सो ही तिस भेदविज्ञानके सद्भावते , 4 ज्ञानी भया संता ऐसें जाने है जैसे प्रचंड अग्निकरि तपाया भी सुवर्ण अपने सुवर्णपणा । स्वभावकू नाही छोडे, तैसें प्रचंड तीवकर्मका उदयकरि युक्त भया संता भी ज्ञानी है सो अपना । 卐 ज्ञानपणा नाहीं छोडे है। जातें जो जाका स्वभाव है, सो हजारा कारण मिले तौऊ सो.. ताका स्वभावकू छोडेनेकू असमर्थ है। जो स्वभाव छोडे, सौ तिस छोडनेकरि तिस स्वभावमात्र । जो वस्तु ताका हो अभाव होय; सो वस्तुका अभाव होय नाही, जातें सत्ताका नाशका असंभव . जज है। ऐसें जानता संता ज्ञानी है सो कर्मकरि व्याप्त है तोऊ रागरूप नाहीं होय है, द्वेषरूप नाहीं - होय है, मोहरूप नाहीं होय है। तो कैसा होय है ? एक शुद्ध आत्माहीकू पावे है। बहुरि जाकै । है जैसा कह्या तैसा भेदविज्ञान नाहीं है, सो तिस भेदविज्ञानके अभावते अज्ञानी भया संता अज्ञान रूप अंधकारकरि आच्छादितपणाकरि चैतन्यचमत्कारमात्र आत्माका स्वभावकू नाहीं जानता संता ॥ रागस्वरूप ही आत्माकू मानता संता रागी होय है, द्वेषी होय है, मोही होय है, शुद्ध आत्माकू कदाचित् भी नाहीं पावे है। तातें यह ठहरया-जो भेदविज्ञानही शुद्ध आत्माका पावना है। 2 भावार्थ--भेदविज्ञानतें आत्मा ज्ञानी होय है, तब कर्मका उदय आवै ताकरि तप्तायमान " होय तौऊ अपना ज्ञानस्वभावतें छूटे नाहीं है । जाते जो जाका स्वभाव है, सो, चाहो जेत कारण मिलो, स्वभावतें छूटे नाहीं, जो स्वभावतें छूटे तो वस्तुका नाश होय, यह न्याय है । तातें कर्मके, , उदयमें ज्ञानी रागी द्वेषी मोही नाहीं होय है । बहुरि जाके भेदविज्ञान नाहीं है, सो अज्ञानी , मया संवा रागी द्वेषी मोही होय है । तातें यह निश्चित है, जो भेदविज्ञानहीते शुद्ध आत्माकी है 乐乐,乐 听听听听听听听听听听 -
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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