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________________ २ फफफफफफफफफफफफ 5 विवक्षाका विचित्रपणा है । बुद्धिपूर्वक रागादिकका अभावकी अपेक्षा तौ अबुद्धिपूर्वक रागादिक 5 छे भी निरासू का, अर अबुद्धिपूर्वकका अभाव भये केवलज्ञान ही उपजैगा, तब साक्षात् फ्र 卐 निरासून होयहीगा ऐसें जानना । अव इस ही अर्थका कलशरूप काव्य कहे हैं । 卐 卐 5 5 शार्दूलविक्रीडितच्छदः सन्यस्य त्रिजबुद्धिपूर्वमनिशं रागं समग्र स्वयं वारंवारमबुद्धिपूर्वमपि तं जेतु स्वशक्ति स्पृशम् । उच्छिदन् परिवृत्तिमेव सकलां ज्ञानस्य पूर्णा भवनात्मा नित्यनिरास्वो भवति हि ज्ञानी यदा स्याचदा ॥ फफफफफफफफफफफफफ 5 भावार्थ - तौ सुगम है। जब समस्तरागकूं हेय जान्या तब ताका मेटनेहीका उद्यमी भया प्रवर्तें है, तब सदा निरासूत्र ही कहिये । जातें आसू के भावनिकी भावनाका अभिप्रायका या 卐 卐 卐 卐 अर्थ - यह आत्मा जब ज्ञानी होय है, तब अपने बुद्धिपूर्वक रागकूं तौ समस्तकूं आप दूरी करता संतान है, बहुरि अनुद्धिपूर्वक रागकूं भी जीतनेकूं बारंबार अपनी ज्ञानानुभवनरूप शक्ती स्पर्शता संता प्रवतें हैं, बहुरि ज्ञानकी पलटनी है ताकूं समस्तहीकूं दूरि करता संता ज्ञानकुं स्वरूपविषथांभता पूर्ण होता संता प्रवर्ते है। ऐसा ज्ञानी होय तब शाश्वता निरासूब होय है । प्र 卐 अभाव | बहुरि यहां वद्धिपूर्वक अबुद्धिपूर्वककी दोय सूचना है। एक तौ जो आप कीया न चाहे भर परनिमित्ततें जबरी होय ताकूं आप जाणे भी तौऊ ताकूं अबुद्धिपूर्वक कहिये । बहुरि फ्र 5 दूजा जो अपने ज्ञानगोचर ही नाहीं प्रत्यक्षज्ञानी जाने है। तथा ताकै अविनाभाविचिन्हकरि अनुमानतें जानिये, सो अबुद्धिपूर्वक है ऐसें जानना । आगे पूछे है, जो सर्व ही द्रव्यासूक्की 5 संततीकूं जीवतै ज्ञानी निरासूत्र कैसे ? ऐसे प्रश्नका श्लोक है । 卐 अनुष्टुप् छन्दः सर्वस्यामेव जीवत्यां द्रव्यप्रत्ययसन्ततौ । कुतो निरासूवो ज्ञानी नित्यमेवेति चेन्मतिः ||५|| 卐 - अर्थ - ज्ञानीकै सर्व ही द्रव्यासूवकी संततीकूं जीवते संतै ज्ञानी नित्य ही निरासूव है, ऐसा 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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