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________________ फ卐ज व स्कीमवंतमादिमध्यांत विमुक्तमनाकुलमेकं केवलमखिलस्थापि विश्वस्योपरितरतम्विाखंडप्रतिभासमयमनंतं विज्ञानधनं प परमात्मानं समयसारं विदन्नेवात्या सम्यग्दृश्यते झायते च ततः सम्यग्दर्शनं झालं च समयसार एव । + अर्थ-जो सर्व पक्षात रहित है सो ही समयसार ऐसा कया है बहुरि यह समयसार है ॥ 1- सोही केवल सम्यग्दर्शनज्ञान ऐसा नामकू पावे है यह नाम वाहीकै है, वस्तु दोय नाहीं है। जो .. " निश्चयतें समस्त नयपक्षत भेवरूप न किया जाय ऐसा चिन्मात्रभाव, तिसकरि विलय भये हैं 卐 समस्त विकल्पनिके व्यापार जामैं ऐसा समयसार शुद्धस्वरूप है । सो यह ही एक केवल सम्य- __ ज्ञान ऐसा नामकू पावे है । परमार्थत एकही है। जाते आना प्रथम ही श्रतज्ञानके अवलंबन 'करि ज्ञानस्वभाव आत्माका निश्चयकरि, तापीछे निश्चयतें आत्माको प्रगट प्रसिध्दि होनेके 4 अर्थि परख्याति जो आत्माते परपदार्थकी ख्याति कहिये प्रगट होना, ताकू कारण जो इंद्रिय 9 अर मनके द्वारै प्रवृत्तिरूप बुद्धि, ताकुं गौण करी आत्माके सन्मुख किया है मतिज्ञानका स्वरूप 卐 1. जाने ऐसा होय है । बहुरि तैसे ही नानाप्रकारके नयनिके पक्ष, तिनिका अवलंबन करी अनेक .. " विकल्पनिकरि आकुलता उपजावती जो श्रृतज्ञानकी बुद्धि ताकू भी गौण करी, अर श्रुतज्ञान है ताकू भी आत्मतल स्वरूपविर्षे सम्मुख करता संता अत्यंत निर्विकल्परूप होय, अर तत्काल + ही अपने निजरसहीकरि व्यक्त प्रगट होता आदि मध्य अंतके भेदकरि रहित, अनाकुल एक 5 केवल समस्त पदार्थसमूह जो लोक, ताके उपरि तरता जैसें होय तैसें अखंडप्रतिभासमय के + अविनाशी अनंतविज्ञानधन स्वभावरूप परमात्मा जो समयसार, ताही अनुभवता संता सम्यका कार देखिये है श्रद्धिये है, सम्यक्प्रकार जानिये है । तातें यह ही सम्यग्दर्शन है, यह ही सम्य卐 ग्ज्ञान है ऐसें यह ही समयसार है। मर भावार्थ-आत्माकू पहले आगमज्ञानतें ज्ञानस्वरूप निश्चयकरि, पीछे इंद्रियबुद्धिरूप मतिज्ञानकू भी ज्ञानमात्रहीमैं मिलाय, श्रुतज्ञानरूप नयनिक विकल्प मीटि, अर श्रुतज्ञानकू भी निर्विकल्प 卐5
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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