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________________ + ! + + + + स्वागताछन्द: हिदभावभरभावितभावाऽभावभावपरमार्थतयैकं । बंधपद्धतिभपास्य समस्तो चेतये समयसारमपारं ॥४७॥ पक्षातिकांत एव समयसार इत्यवतिष्ठते । 卐 अर्थ-मैं जू हों तत्वका जाननेवाला सो समयसार जो परमात्मा ताही अनभवू ई। केसा है समयसार ? चैतन्यस्वभावका भर कहिये पुंज, ताकरि भया हे भाव अभावस्वरूप जो एक卐 भावरूप परमार्थ तिसपणाकरि एक है। ___टीका-परमार्थकरि विधिप्रतिषेधका विकल्प जामैं नाहीं है। बहुरि पहले कहा करि 9 अनुभवूई ? समस्त ही जो बंधकी पद्धति कहिये परिपाटी, ताकू दूरि करिके। . भावार्थ-परद्रव्यके कर्ताकर्म भावकरि बंधकी परिपाटी चाले थी, ता पहले दूरी करि "समयसारकू अनुभवू हौं । बहुरि कैसा है ? अपार है, जाके केवलज्ञानादि गुणका पार नाहीं है। म आगे ऐसा नियमकरि ठहरावे है, जो पक्ष अतिक्रांत दूरवर्ती ही समयसार है । गायो सम्मइंसणणाणं एवं लहदित्ति णवरि ववदेसं । सव्वणयपक्खरहिदो भणिदो जो सो समयसारो ॥७॥ सम्यग्दर्शनज्ञानमेतल्लभत इति केवलं व्यपदेशं । सर्वनयपक्षरहितो भणितो यः स समयसारः ॥७॥ आत्मख्यातिः-अयमेक एव केवलं सम्यग्दर्शनज्ञानव्यपदेशं किल लभते । यः खल्बखिलनयपक्षाधुग्णतया विश्रांतसमस्तविकल्पम्यापारः स समयसारः । यता प्रथमतः श्रुतज्ञानावष्टंभेन शानस्वभावमात्मानं निश्चित्य ततः खल्वात्म"काल्यातये परख्यातिहेतूनखिला एवेद्रियानिद्रियबुद्धीवधार्य आत्माभिमुखीकृतमतिज्ञानतवः, तथा नानाविषपक्षालंबनेजनानेकविकल्पैराकुलपतीः श्रुतशामघुवीरप्यवधार्य श्रुतज्ञानतनमप्यात्माभिमुखीकुर्वनत्यंतमविकल्पोभूत्वा प्रगित्येक स्वरसत + 녀녀녀 + + +
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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