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________________ फफफफफफफफफफफ 卐 पुरुष विकल्पके जालतें रहित शांत भया है चित्त जिनिका ऐसे भये संते साक्षात् अमृतकुं पीछे हैं । 卐 टीका - जेतें कछू पक्षपात रहे तेर्ते चित्तका क्षोभ मिटै नाहीं, जब सर्वनयका पक्षपात मिटि जाय, तब वीतरागदशा होय स्वरूपकी श्रद्धा निर्विकल्प होय अर स्वरूपविषे प्रवृत्ति होय है अब नयपक्षकूं प्रगटकर कहे हैं, अर तिसकूं छोड़े है सो तत्त्वज्ञानी है स्वरूपकूं पावे है, ऐसा auth heroy die काव्य कहे हैं। I कफ फ्र 卐 फ्र उपजातिच्छन्दः एकस्य बद्धो न तथा परस्य चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपाती । यस्तत्ववेदी च्युतपक्षपातस्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ||२५|| अर्थ-यहू चिन्मात्र जीव है सो एकनका तौ कर्मकरि बंध्या है ऐसा पक्ष है । बहुरि दूसरे arer कर्मकर arti बंध्या है ऐसा पक्ष है। ऐसे दोऊ ही नयके दोऊ पक्ष हैं। लो ऐसें दोऊ treat are पक्षपात है सो तौ तत्रवेदी नाहीं है । बहरि जो तत्त्ववेदी है, तत्त्वका स्वरूप जान-5 नेवाला है, सो पक्षपातरहित है । तिस पुरुषका जो चिन्मात्र आत्मा है सो चिन्मात्र ही है । 卐 या पक्षपातकर कल्पना नाहीं करे है । फ्र 卐 फ टीका-इहां शुद्ध प्रधानकरि कथन है। तहां जीवनामा पदार्थकूं शुद्ध नित्य अभेद चैतन्यमात्र स्थापि अर कहे हैं, जो इस शुद्धनयका भी जो पक्षपात करेगा, सो भी तिस स्वरूप5 का स्वादकूं नाहीं पावेगा । अशुद्धपक्षकूं तो गौणकरि कहतेहि आवे है । अर कोई शुद्धनधका भी जो पक्षपात करेगा, तौ पक्षका राग न मिटेगा । तब वीतरागता नाहीं होयगी । तातें पक्षपातकुं 5 छोडि चिन्मात्रस्वरूपविषै लीन भये समयसार पावे है। अर चैतन्यके परिणाम परनिमित्तते अनेक होय हैं । तिनि सर्व निर्ऋ गौण कहते ही आवे है । तातें सर्वपक्ष छोडि शुद्धस्वरूपका 卐 श्रद्धान करि पीछे स्वरूपविषै प्रवृत्तिरूप चारित्र भये वीतरागदशा करना योग्य है। अब जैसें 5 वद्ध अबद्धपक्ष छुडाई तैसें ही अन्यपक्षकूं प्रगटकरि कहि छुडावे हैं । 卐 प्राभृव २३
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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