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________________ फ 卐 45 आत्मख्यातिः -- पदि यथा जीवम्य तन्मयत्वाज्जीवादन्य उपयोगस्तथा जडः क्रोधोप्पनन्य एवेति प्रतिपचिस्तद चिद्रपजडयोरनन्यत्वाज्जीवस्योपयोगमयत्ववज्जडक्रोधमयत्वापत्तिः । तथा सति तु य एव जीवः स एवाजीव इति द्रयांतरलुप्तिः । एवं प्रत्ययनो कर्मकर्मणामपि जीवादनन्यत्वप्रतिपत्तावयमेव दोषः । अथैतदोषभयादन्यएवोपयोगात्मा जीवोन्य hi एव जडस्वभावः क्रोधः इत्यभ्युपगमः । तर्हि यथोपयोगात्मनो जीवादन्यो जडस्वभावः क्रोधः तथा प्रत्ययनोकर्म- 5 कर्माण्यप्यन्यान्येव जडस्वभावत्वाविशेषामास्ति जीवप्रत्यययोरेकत्वं । अथ पुद्गलद्रव्यस्य परिणामस्वभावत्वं साधयति 5 सांख्यमतानुयायिशिष्यं प्रति । 卐 अर्थ-जैसे जीवके अनन्य कहिये एकरूप उपयोग है, तैसें जो क्रोध भी एकरूप अनन्य होय, तौ ऐसें जीवकै अर अजीव अनन्या रूपपणा । ऐसें भये इस लोकमैं जो जीव है सोही नियमतें तैसा ही भया, अजीव भया । ऐसें दोडके एकत्व होने में एक द्रव्यका लोप भया यह दोष आया । ऐसें ही प्रत्यय नोकर्म कर्म इनिविषै यह ही दोष जानना । अथवा इस 5 दोषके भयतें तेरे मतमें क्रोध तौ अन्य है अर उपयोगस्वरूप चेतयिता आत्मा है सो अन्य ऐसें कहे हैं । सो क्रोधकी की ज्यों प्रत्यय नोकर्म कर्म एभी आत्मातें अन्य ही हैं । फ टीका--जो जैसे जीवके तन्मयीपणातें जीवतें उपयोग अनन्य है, एकरूप है, तैसें जड फ्र फफफफफफफफफफफफ कोष भी अनन्य ही है, ऐसी प्रतिपत्ति है, तौ चिद्रूपके अर जड़के अनन्यपणातें जीवकी उपयोग 卐 प्रा 卐 卐 फ्र मीपणाकी ज्यों जड क्रोधमयीपणाकी भी प्राप्ति आई । तैसें होते जो हो जीव है सो ही अजीव फ्र 45 है, ऐसें होते न्यारा अन्य द्रव्यका लोप भया । ऐसें ही प्रत्यय नोकर्म कर्मनिके भी जीवतें अनन्य की प्रतिपत्ति विषै यह ही दोष आवे है । बहुरि इस दोषके भयतें ऐसे मानें जो उपयोगस्वरूप 5 जीव है सो तौ अन्य ही है अर जडस्वरूप क्रोध है सो अन्य है, तो जैसे उपयोगस्वरूप जीवतें 5 asस्वभाव क्रोध है सो अन्य है तैसें ही प्रत्ययन्दोकर्म कर्म भी अन्य ही हैं, जातें जैसें जडस्वभाव क्रोध तैसें ही प्रत्यय नोकर्म कर्म भी जड, इनिमैं विशेष नाहीं है, ऐसें जीवकै अर प्रत्ययकै एक फ पणा नाहीं । 卐 २७ 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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