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________________ 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 s 乐乐 करे हैं । तातें जीव है सो पुद्गलकर्मनिका अकर्ता है । अर ते गुण ही तिनि पुद्गलकर्मनिके कर्ता हैं। ते गुण पुद्गलद्रव्यमयी ही हैं । ताते यह ठहरया, जो पुद्गलकर्मका पुदगलद्रव्य ही एक 卐कर्ता है। - भावार्य-अन्य द्रव्यका अन्य द्रव्य कर्ता नाहीं, इस न्यायतें आत्मद्रव्य तौ पुद्गलद्रव्यकर्म का कर्ता नाही, अर बंधके कर्ता योगकषायादिकतें भये गुणस्थान हैं, ते परमार्थकार अचेतन पुद्गलमयी हैं, ताते ते पुद गलकर्मके कर्ता हैं, अर जीवकू कर्ता मानना अज्ञान है। बहुरि कहे हैं, जो जीव के अर तिनि प्रत्ययनिकै एकपणा भी नाहीं है। गाथा--- जह जीवस्स अणगणुवओगो कोधो वि तह जदि अणण्णो। जीवस्साजीवस्स य एवमणरणत्तमावण्णं ॥४५॥ एवमिह जो दु जीवो सो चेव दुणियमदो तहाजीवो। अयमेयत्ते दोसो पञ्चयणोकम्मकम्माणं ॥४६॥ अह पुण अण्णो कोहो अण्णुवओगप्पगो हवदि चेदा। जह कोहो तह पञ्चय कम्मं णोकम्ममवि अण्णं ॥४७॥ यथा जीवस्यानन्य उपयोगः क्रोधोपि तथा यद्यनन्यः । जीवस्थाजीवस्य वैवमनन्यत्वमापन्नं ॥४५॥ एवमिह यस्तु जीवः स चैव तु नियमस्तथाजीवः अयमेकत्वे दोषः प्रत्ययनोकर्मकर्मणां ॥४६॥ अथ पुनः अन्यः क्रोधोऽन्यः उपयोगात्मको भवति चेतयिता। यथा क्रोधस्तथा प्रत्ययाः कर्म नोकर्माप्यन्यत् ॥४७॥ 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐 乐乐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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