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________________ पुनः पुदलकर्मणः कर्ता नाम । अर्थसदायात पतः पुद्गलद्रम्पमयानां चतुर्णा सामान्यनत्ययानां विकल्यास्त्रयोदश विशेष- 4 प्रत्यया गुणश्चम्दवाच्याः केवला एव कुर्वति कर्माणि । ततः पुगलकर्मणामकर्ता जीवो गुणा एव तत्कर्तारस्ते तु पुगल"म्यमेव । ततः स्थित पुगालक्षमणः पुनलदम्यवेक कर । न च जीवप्रत्यययोरेकत्वं । # अर्थ-प्रत्यय कहिये कर्मबंधकू कारण जे आस्रव, ते सामान्य तौ च्यारि हैं । ते बंधके कर्ता ...कहिये है। मिथ्यात्व, अविरमण, कषाय, योग ऐसे ते जानने । बहुरि तिनिका भेद तेरह भेदरूप कया है। सो मिथ्याष्टिकू आदि लगाय सयोगकेवलीताई हैं ते तेरह गुणस्थान जानने। ते ये निश्चयदृष्टिकरि जातें पुद्गलकर्मके उदयतें भये हैं तातें अचेतन हैं । सो जो ये कर्म करे हैं, तौ तिनिका वेदक कहिये भोक्ता आत्मा नाहीं होय है । बहुरि इनि गुण ऐसी संज्ञा है । ते ए प्रत्यय गुण हैं । ते कर्म करे हैं। तातें जीव सौ कर्मका कर्ता नाहीं है । बहुरि ये गुण हैं ते "कर्म करे हैं। 卐 टीका-निश्चयकरि पुद्गलकर्मका एक पुद्गलबव्य ही कर्ता है। तिस पुद्गलद्रव्यका विशेष .....मिथ्यात्व अविरति कषाय योग ये च्यारि सामान्य हेतुपणाकरि बंधका च्यारि कर्ता हैं। बहुरि तेही भेदरूप भये संते मिथ्यादृष्टीकू आदि लेकरि सयोगकेवली ताई तेरह कर्ता हैं । सो ये पुद्गल. कर्मके विपाकके भेद हैं, तातें अत्यंत अपेतन हैं। जड़ हैं। ते अचेतन भये संते जो केवल तेही "पुदगलकर्मक कर्ता होयकरि व्याप्यव्यापकभावकरि किछू पुद्गलकर्मक करे, तो करौ। जीवका जया कहा आया ! किछू भी न आया। अथवा इहां यह तर्क है जो पुद्गलमयी मिथ्यावा"विक वेदता संता जीव है सो आपही मिथ्यादृष्टि होयकार पुद्गलकर्म करे है। ताका या प्रासमाधान-जो यह अविवेक हे अज्ञान है। जाते आस्मा भाव्यभावकभावके अभावतें पुम्हार्म ' जे मिथ्यात्वादिक तिनिका वेदक कहिये भोक्ता भी निश्चयकरि नाही है। तो पुद्गलकर्मका कर्ता सें होय । सो अब ऐसा आया-जो, जाते पुद्गलाव्यमयी चे सामान्य व्यारि प्रलय, तिनिके लिभदास प्रत्यय तेरह, ते गुणशद करि कड़े तिनिके नाम गुणस्थान हैं, ही केवळ वर्मनिर है 听听听听听听听听听听 % फर..
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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