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________________ आत्मख्यातिः– अयं खल्वात्मा न गृह्णाति न परिणमयति नोत्पादयति न करोति न वध्वादि व्याम्यव्यापकभावाभावात् । प्राप्त व्याप्यव्यापकभावाभावेपि प्राप्यं विकार्य निर्वत्यच पुद्गलद्रव्यात्मकं कर्म गृह्णाति परिणमयत्युत्पादयति करोति बध्नाति वात्मेति विकल्पः स किलोपचारः । कम-5 मिति चेत् । फ अर्थ - आत्मा है सो पुद्गलद्रव्यकूं उपजावे है, बहुरि करे है, बहुरि बांधे है, बहुरि परिणमा है, बहुरि ग्रहण करे है। ऐसा कहना है सो व्यवहार नयका वचन है । टीका - यह आत्मा निश्चयकरि पुद्गलद्रव्यस्वरूपकर्मकुं व्याप्यव्यापकभावके अभावतें प्राप्य विकार्य निर्वर्त्य ए तीन प्रकार के कर्मकू ग्रहण नाहीं करे है, परिणमा नाहीं है, उपजावै 5 नाहीं है, करे नाहीं है, बांधे नाहीं है । बहुरि व्याप्यव्यापकभावके अभाव होते भी प्राप्य विकार्य निर्वर्त्य ऐसें तीन प्रकारके पुद्गलद्रव्यस्वरूप कर्मकूं यह आत्मा ग्रहण करे है, परिणामावे है, उपजावे है, करें है, बांधे है। ऐसा विकल्प होय है सो प्रगट उपचार है । भावार्थ-व्याप्यव्यापकभावविना कर्मका कर्ता कहना सो उपचार है। आगे पूछे है, यह 5 उपचार कैसे है ? ताका उत्तर दृष्टांत करि कहे हैं। गाथा 55 卐 卐 फ्र கழிககுககுககுமிழழகழி समय २०४ फ 卐 5 5 फ्र 卐 फ க*யீககுபிபிபி கழக जह राया ववहारा दोसगुणुप्पादगोत्ति आलविदो । तह जीवो ववहारा दव्वगुणुप्पादगो भणिदो ॥४०॥ यथा राजा व्यवहाराद्दोषगुणोत्पादक इत्यालपितः । तथा जीवो व्यवहाराद् द्रव्यगुणोत्पादको भणितः ॥४०॥ आत्मख्यातिः—यथा लोकस्य व्याप्यव्यापकभावेन स्वभावत एवोत्पद्यमानेषु गुणदोषेषु व्याप्यव्यापकभावाभावेपि 5 तदुत्पादको राजेत्युपचारः । तथा पुद्गलद्रव्यस्य व्याप्यव्यापकभावेन स्वभावत एवोत्पद्यमानेषु गुणदोषेषु व्याप्यव्यापक卐 भावाभावेपि तदुत्पादको जीव इत्युपचारः । 卐 卐
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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