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________________ - अर्थ-जैसें प्रजाविर्षे राजा है सो दोष अर गुणका उपजावनहारा है ऐसा व्यवहारतें कहा तेसै जीवकू भी व्यवहारते पुद्गलद्रव्यविर्षे द्रव्यगुणका उत्पादक कया है। . टीका-जैसें लोककै प्रजाकै व्याप्यव्यापकभावकरि स्वभावहीते उपजते जे गुण अर दोष ..तिनिविर्षे राजाकै व्याप्यव्यापकभावका अभाव है, तोऊ लोक कहै, जो गुणदोषका उपजावन5 हारा राजा है ऐसा उपचार है। तैसें पुद्गलद्रव्यके व्याप्यव्यापकभावकरि स्वभावहोतें उपजते जे गुण अर दोष, तिनिविर्षे जीवकै व्याप्यव्यापकभावका अभाव है तौऊ तिनि गुणदोषनिका उपजाक्नहारा जीव है ऐसा उपचार है। भावार्थ-जैसे लोकमैं कहिये है, जो, जैसा राजा है सेसी ही प्रजा है । ऐसें कहिकरि गुण._ दोषका कर्ता राजाकू कहे हैं। तैसें ही पुद्गलद्रव्यके गुणदोषका का जीवकू कहिये हैं। सो यह परमार्थदृष्टि विचारिये तव उपचार है। आगै पूछे है, जो पुद्गलकर्मका कर्ता जीव नाहीं है, तो कौन है ? ऐसें प्रश्नका काव्य है। वसंततिलकाछंदः जीवः करोति यदि पुद्गलकर्म नैव कप्तहिं तत्कुरुत इत्यभिशंकयैव । एतर्हि तीनरयमोहनिवर्हणाय संकीर्त्यते शृणुत पुद्गलकर्मकर्तृ ॥१८॥ __ अर्थ-जो पुद्गलकर्मकू जीव नाहीं करे है, तो तिस पुद्गलकर्मकू कौन करे है ? ऐसी आशंका करिकै अर इस कर्ताकर्मका तीबवेगरूप मोह अज्ञानके दुरि करनेकू, पुद्गलकर्मका जो कर्ता है सो कहिये है । सो हे ज्ञानके इच्छुक पुरुष हो तुम सुणु। याके उत्तरको गाया सामण्णपच्चया खलु चउरो भगणंति बंधकत्तारो। 5 मिच्छत्तं अविरमणं कसायजोगा य बोद्धव्वा ॥४॥ " 5 है ।卐ज 步步步
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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