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व्यवहारस्य वात्मा पुद्गलकर्म करोति नैकविधं ।
तच्चेव पुनर्वेदयते पुद्गलकर्मानेकविधं ॥१६॥ आत्मख्यातिः-यथांताप्यव्यापकभावेन मृचिकया कलशे क्रियमाणे भाव्यभावकभावेन मृत्तिकयैवानुभूयमाने च पहिाप्यन्यापकभावेन कलशसंभवानुकूलं व्यापार कुर्वाणः कलशकृततोयोपयोगजां तृप्ति भाव्यभावकभावनानुभवंश कलालः कलशं करोत्यनुभवति चेति लोकानामनादिरूदोस्ति वावद् व्यवहारः, तांताप्यन्यापकभावेन पुद्गलद्व्येण कर्मणि क्रियमाणे भाव्यभावकभावेन पुगलद्रव्येणेवानुभूयमाने च यहिाप्यव्यापकभावेनाज्ञानात्युद्गलकर्मसंभवानुकूलं , परिणामं कर्मणः पुद्गलकर्मविपाकसंपादितविषयसनिधिप्रधावितां सुखदुःखपरिणति भाव्यभावकभावनानुभवंश्च जीवः । पुद्गलकर्मकरोत्यनुभवति चेत्यज्ञानिनामासंसारप्रसिद्धोस्ति तावद्वयवहारः। अथैनं दृष्यति ।
अर्थ-व्यवहारनयका यह मत है, जो आत्मा अनेक प्रकार पुद्गलकर्म करे है। बहरि तिसही" अनेक प्रकार पुद्गलकर्मकू वेदे है भोगवे है।
टीका-तहां प्रथम दृष्टांत कहे हैं-जैसें मृत्तिका कलशकू करे है अर भोगवे है सो अंतव्याप्यव्यापकभावकरि करे है, तथा भाव्यभावक भावकरि भोगवे है। तोऊ बाह्य व्याप्यव्यापक भावकरि ॥ कलश होनेवि संभवे तिसके अनुकूलव्यापारकू अपने हस्तादिककार करता अर कलशकरि किया । जो जलका उपयोगते भया तृप्तिभाव ताकू भाव्यभावकभावकरि अनुभवन करता भोगवता जो
भकार ताक लोक कहे हैं, जो इस कलशकू कुभकार करे है तथा भोगवे है, ऐसा लोकनिका 4 अनादित प्रसिद्ध भया व्यवहार प्रवर्ते है । तेसैं ही दाटीत है जो पुद्गलकर्म अंताप्यव्यापकभावकरि पुद्गलद्रव्य करे है अर भाव्यभावकभावकरि पुद्गलद्रव्य ही अनुभवे है भोगवे है। तोऊ ॥ वाद्य व्याप्यव्यापकभावकरि अज्ञानतें पुद्गलकमके होनेके अनुकूल अपना रागादिपरिणाम करता ..
अर पुदगलकर्मके उदयकरि निपजाई जो विषयनिकी समीपता तातें दोडी जो अपनी सुखदुःखम रूप परिणति ताक् भाव्यभावक भावकरि अनुभवता भोगवता जो जीव सो पुद्गलकर्म करे है भागवे है। ऐसे अज्ञानी लोकनिका अनादि संसारतें लेकरि प्रसिद्ध भया व्यवहार प्रवते है।
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