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________________ वर्णादिक कोई प्रकार कहिये । अर मोक्षावस्थामैं सर्वथा ही नाहीं । तातें जीवकै वर्णादिककरि । मिया तादात्म्यसंबंध नाही है ऐसा न्याय है। आगें जीवकै वर्णादिककरि तादात्म्य है ऐसा कोई निश्या अभिप्राय करे, तो तामैं यह दोष है सो कहे हैं । गाथा जीवो चेव हि एदे सव्वे भावत्ति मण्णसे जदि हि। जीवस्साजीवस्स य णत्थि विसेसोहि दे कोई ॥१२॥ जीवश्चेव येते सर्वो भावा इति मन्यसे यदि हि । जीवस्याजीवस्य च नास्ति विशेषस्तु ते कश्चित् ॥६२॥ आत्मख्यातिः-यथा वर्णादयो भावाः क्रमेण भाविताविर्भावतिरोभाषाभिस्ताभिस्ताभिर्व्यक्तिभिः पुद्गलगन्यमनु-' गच्छंतः पुद्गलस्य वर्णादिसादात्म्यं प्रथयति तथा वर्णादयो भावाः क्रमेण भाविताविर्भावतिरोभावाभिस्ताभिस्ताभिक्तिमिर्जीवमनुगर्छवो जीवस्य वर्णादितादात्म्यं प्रथर्मतीति यस्याभिनिवेशः तस्य शपद्रव्यासाधारणस्या वर्णा-卐 द्यात्मकत्वस्य पुदललक्षणस्या जीवेन स्वोकरणाजीवपुद्गलयोरविशेषप्रसक्तौ सत्यां पुद्गलेभ्यो भिन्नस्या जीवद्रव्यस्याभावाद् भवत्येव जीवाभावः । संसारावस्थायामेव जीवस्य वर्णादितादात्म्यामित्यभिनिवेशेप्यायमेव दोषः। ' . अर्थ-वर्णादिकतें जीक्कै तादात्म्य माननेवाला कहे हैं। हे मिथ्या अभिप्रायी जो तू, ऐसें माने। है, जो ए वर्णादिकभाव सर्व ही जीव हैं, तो तेरे मतमैं जीवके अर अजीवकै किछू विशेष नाहीं है। " ____टीका-जैसे वर्णादिकभाव हैं ते अनुक्रमतें भया है आविर्भाव कहिये प्रगट होना उपजना अर तिरोभाव कहिये छिपना नाश होना, ज्यां ऐसी जेतेते व्यक्ति कहिये पर्याय तिनिकरि पुद्गलद्रव्यहीकू अन्वयरूप प्राप्त होते पुद्गलद्रव्यहीके तादाल्यस्वरूपकू विस्तारे हैं । तैसे हि ए वर्णा-' दिकभाव क्रमकरि भया है आविर्भाव तिरोभाव ज्यां ऐसें जेतेते पर्याय अवस्था तिनिकरि जीवकू .. अन्वयरूप प्राप्त होते जीवकै वर्णादिकते तादात्म्य स्वरूपकू विस्तारे हैं, ऐसा जाका अभिप्राय है , ताके अन्य बाकी द्रव्यते असाधारण वर्णादि स्वरूपपणा होऊ । जो पुदगलद्रव्यका लक्षण ताका 5 折 $ $ $ 乐乐 乐乐 乐乐 5 55 5 5 5 5 牙
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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