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________________ 45 5.5 तत्र भवे जीवानां संसारस्थानां भवति वर्णादयः । संसारप्रमुक्तानां न संति खलु वर्णादयः केचित् ॥६१॥ आत्मख्याति:-यकिल सर्वास्वप्यवस्थासु यदात्मकत्वेन ब्याप्तं भवति तदात्मकत्वम्यातिशून्यं न भवति तस्य तैः ... ३२) सह तादात्म्पलक्षणः संबंधः स्यात् । ततः सर्वास्वप्यवस्थासु वर्णाद्यात्मकत्वव्याप्तस्य भवतो वर्णादात्मकत्वन्यातिशून्यस्या- 5 भवतश्च पुद्गलस्य वर्णादिभिः सह तादात्म्यलक्षणः संबंधः स्यात् । संसारावस्थायां कथंचिद्वर्णाघात्मकत्वव्याप्तस्य भवतो पर्याधात्मकत्वव्याप्तिशून्यस्याभवतश्चापि मोक्षायस्थायां सर्वथा वर्णावात्मकत्वव्याप्तिशून्यस्य मक्तो वर्णाद्यात्म कत्वव्याप्तस्थामवतश्च जीवस्य वर्गादिभिः सह तादात्म्यलक्षणः संबंधो न कथंचनापि स्यात् । जीवस्य पणादिवादात्त्य卐 दुरभिनिवेशे दोपश्चायं । ____ अर्थ-वर्णादिक हैं ते, जे जीव संसारविष तिष्ठे हैं, तिनिकै तिस संसारवि तो होय हैं। + बहुरि जे संसारतें छुढे हैं मुक्त भगे हैं, तिनिकै नदिक निश्चयकरि कोई भी नाहीं हैं। यातें 5 तादात्म्यसंबंध नाहीं है।। टीका-जो निश्चयकरि सर्व ही अवस्थावियें तत्स्वरूपकरि व्याप्त होय अर तिस स्वरूपकी प्र व्याप्तिकरि रहित न होय, तिसवस्तुके तिनिभावनिकरि सहित तादात्म्यसंबंध होय, तातें सर्व ही अवस्थाविर्षे वर्णादि स्वरूपपणाकरि व्याप्त होता, बहुरि वर्णादिककी व्याप्तिकरि शून्य न 卐 होता, जो पुद्गलद्रव्य ताके वर्णादिकभावनिकरिसहित तादात्म्यलक्षण संबंध होय है। बहुरि के संसार अवस्थावि कथंचित् वर्णादि स्वरूपपणाकरि होता, अर वर्णादिस्वरूपपणाकी व्याप्तिकरि शन्य न होता जो जीव ताके मोक्ष अवस्थाविर्षे सर्व प्रकारकरि वर्णादि स्वरूपपणाकी व्याप्ति करि शून्य होताकै अर वर्णादिस्वरूपपणाकरि व्याप्त न होताके वर्णादिभावनिकरि तादाल्यलक्षण - - कोई प्रकार भी नाहीं है। ___भावार्थ-जो वस्तु जिने भावनिकरि सर्व अवस्थामै च्यापै ताकै तिनिभावनिकरि तादाल्य संबंध कहिये, सो वर्णादिकतें पुद्गल तो सर्व अवस्थामें व्यापक है ।.अर जीवके संसारावस्थामैं तो 一听听听 s s 5 5 -
SR No.090449
Book TitleSamayprabhrut
Original Sutra AuthorKundkundacharya
Author
PublisherMussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year1988
Total Pages661
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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