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सामाचारीशत
श्रीजिनव. लभसूरिसामाचारी अधिकार
॥१३७॥
विहिणा गुरुणो करेइ किइकम्मं । बत्तीसदोसरहियं, पणवीसावरसगविसुद्धं ॥ ९॥ थद्ध १ पविद्ध २ मणाढिअ३ परिपिंडिअ ४ मंकुसं ५ ससुबत्तं ६ । कच्छवरिंगिअ ७ टोलगइ-८ ढड्ढरं ९ चेइ-आबद्धं १०॥१०॥ मणदुह ११ रुढ १२ तजिय १३ सढ १४ हीलिअ१५ तिणि १६ भंडणीअंच १७ । दिदुमदि8 १८ संग १९ कर २० मोअण २१ मूण २२ मूअं च २३ ॥११॥ भय २४ मित्ती २५ गारव २६ कारणेहिं २७ पलिओवि। [चि]अं२८ भयंतं च २९ । आलिद्ध ३० मणालिद्धं ३१ चूलिअ ३२ चुडुलित्ति बत्तीसा ॥ १२ ॥ उपवेसमहाजायं, दुहोणयं पयडबारसावत्तं । एगनिखमणतिगुन, चउसिर न मणति पणवीसा ॥ १३ ॥ अह सम्ममवणअंगो, करजुअविहिधरिअपोतिरयहरणो । परिचिंतिय अइआरे, जहक्कम गुरुपुरो विअडे ॥ १४ ॥ अह उवविसित्तु सुतं, सामाइअमाइअं पढी पयओ । अम्भुटियओ म्मि इन्चा-द पढइ दुह उडिओ विहिणा ॥ १५ ॥ दारणा रण तो, गगाहर जा सामए सिनि । किइकम्म किरियठिओ, सड्डी गाहातिगं भणई ॥ १६ ॥ अह [इय] सामाइअउस्सम्गसुत्तमुच्चरिअ काउसग्गठिओ।चिंतइ उज्जोयदुर्ग, चरित्तअइआरसुद्धिकए ॥ १७॥ विहिणा पारिअ सम्म-तसुद्धिहेउं च पढिअ उजो। तह सबलोयअरिहं-तचेइआरोहणुस्सगं ॥१८॥ काउं उज्जोयगरं, चिंतिय पारेइ सुद्धसम्मत्सो। पुक्खरवरदीवहूं, कड्डइ सुयसोहणनिमित्तं ।। १२ ।। पुण पणवीसोस्सासां - उस्सगं कुणह पारए विहिणा । तो सयलकुसलकिरिआ, फलाण सिद्धाण पढइ थयं ॥ २० ॥ अह सुअसमिद्धिहेज, सुय देवीए करेइ उस्सग । चिंतेइ नमुक्कार, सुणइ वदेइ व तीइ थुई ॥२१॥ एवं खेत्तसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई। पढिअं च पंचमंगलं उचविसइ पमज संडासे ॥ २२॥ पुबबिहिणेव पेहिअ, पुत्तिं दाऊण चंदणं गुरुणो । इच्छामो अणु
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