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॥ श्रीलोकपकाशे पथमः सर्गः ॥ २ पादनी
पत २३तनो
१ हाथ. २पनी
१ कुक्षि २कुक्षिए वा ४ हाथनो
१ दंह (अयवा धनुष्य-युग-मुसल) वा ९६ अंगुलनो ।
नालिका इत्यादि.
२००० धनुष्यनी
१गाउ ४ गाउनो
१ योजन शब्दार्य:- अशुलीये एक पादयाय, बे पादौनी एक न, वे ननो हाय, अने चे हाथे एक कुक्षि कहवाय छे. ॥ ५९॥ ने कुक्षिये एक दंड पाप, तेटलान ( दंड जेटला ) प्रमाणवाल धनुष होय, युग, सुशल, नालिका ( दद, धनुष) ए सर्व सरखा (एक अर्थपमाणवाळा ) ॥ ६ ॥ आ दंड विगेरे सर्वे पण छन्नु आंगले [ चार हाथे, वे कुक्षिये ] मपायेला छे. आ शासनयां धनुषनी हजार संख्या (वे इनारधनुप ) बड़े एककोश थाय ॥ ६१ ।। चारकोश (गाउ) वडे एक योजन थाय, परन्तु ते योजन उत्सेध, आत्म, प्रमाण, अंगुलेकरी जुई जुई त्रण प्रकारे याय के.
अर्थात्-आ योजन उत्सेधयोजन आत्मांगुलपोजन ने ममाणांगुलयोजन ए गते ३ मकारनो (ते ते अगुलना अनुकमी) जुदा जुदा पकारमोके ॥ ६२ ॥ अने ए रीते अंगुलना तफावतवडे वन-पाद इत्यादि स प्रमाण त्रण प्रण प्रकारना जाणीने पोतपोनाने उचित स्थाने यथासंभव ( जे मापमा जे पमाणनो उपयोग यतो होय ने प्रमाणपी) योजवां ( उपयोगमा लेवा, )॥ ६३ ॥ अहिं प्रमाणांगुल योजनना पापथी असंख्प कोदाकोहि योजननो ? राज (रज्जु ) कडेल के॥ ६४ ॥ स्वयंभ्रमणसमुदनी जे पूर्ववेदिका अने पश्चिम पेदिका ते बन्ने वेदिकाओर्नु पूर्वयी पश्चिम अधीनुं ( वच्चेनु' ) जे अंतराल ( अंबर)वे एक रज्जु (मान विशेष) प्रमाण पायजे. ( पमाणे लोकोत्तर जन शास्त्रने अनुसारे अंगुप्लादिकन प्रमाण काय)॥६५॥ लोकोरडे अन्य शाखमा-" ८ यव मध्यनो १ अगुल, २४ अंगुलनो १ हाथ, ४ हाथनो एक दंड, तेवा २००० दंडनी , गाउ, ४ माउनी एक पोजन, नथा-१० हायनो १ बैश ( दास ), २० वंशनो ! निवर्तन, अने ४ हाययुक्त