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________________ ।। प्रमाणांगुल-आन्मांगुलविषयम्वरूपम् ॥ कोशः सहस्त्रद्वितयेन तेषाम् ॥ ६६ ॥ स्यायोजनं को शचतुष्टयेन, तथा कराणां दशकेन वंशः ॥ निवर्तनं विंशतिवंशसंख्यः, क्षेत्रं चतुर्भिश्च भुजनिबद्धम् ॥ ६७॥ इत्यायभिधीयते ।। अर्थ-इथे चालु विषय कईशय छे-परन्तु पूर्वनो संबंध जोडवाने पाटे शो के अंगुल प्रमाण पूर्ने सारीरीते बताघेल के नोपण फरीधी कोष्टकमारा दर्शवाय के * अनन्त मूक्ष्मपरमाणुभोनो १ न्यावहारिकपरमाणु अनंत व्यवहार परमाणुनी १ उमलणक्षिणका ८ जलक्षणलक्षिणकानी १ श्लष्णशक्षिणका लापतानो १ उध्वरेणु ८ उधरेणुनो १ प्रसरेणु ८ मरेणुनो १ श्यरेणु ८ रपरेणुनो १ कुरु (युगलिफनो) वालाप ८ कुरु बालापनो हरिवर्षमयमालाम ८ इरिकरम्यवालाननी भवनहरण्यवसवालान ८ हैमवतहरण्यवनबालापनो १ पूर्वापरविदेहवालान ८ पूर्वापरविदेहवालामनो १ भरतरखनवालाम ८ परतैरवनवालाग्रनो १ लीव ८ जीवनी १ युका ८ यूकानो १ पवमय ८ यरमध्यनो १ उत्सेपांगुल ५ गतविषय कोष्टक कही चालु विषय कोष्टक कहेबाय छे, ६ उन्सेशंगुले १ पाद (पगना नळीयानी पहोलाइ * जीवसमासमते अनंत सूम परमाणुधीज अश्लणलक्ष्णिका थायो अने अनंत उसणश्लक्षिणकाधी पक लक्षणलक्षिणका बनेष्छे आ लक्षणलमिणकानुज वीजें नाम व्यवहार परमाणु कडेवायछे अधारतर जुदो व्यवहार प. माणु मथी. १ जम्बूद्वीपप्राप्ति आदि सूधीना अभिप्राय विदेहना चालामधीज होखनु प्रमाण पायजे.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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