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________________ ॥ लोकाकाशे प्रथमः सर्गः ।। (क्षेत्रफळने हिमाय ) दोध अने विस्तृत भावषढे १००० योजन प्रमाणपाळा समवोरस योजनने परस्पर गुणतां १० लाग्य योजन ( १८००४ १०००-२०००००0) उत्सेधांगुलमानबाळा प्राट थायछे. (सूचि अंगुलने हिसावे) १०. योजम प्रमाणने परस्पर गुपये छते एक लाख साठ हजार (४००x४१६००८०) उम्सेधयोजन थाप पेप रोते बन्ने पक्षपाळा ! प्रमाणांगुल्योजनमा प्रायः मर्व आर्यदेश केम * म्माय ? "...८ ॥ बळी ए वाचत पण अलौकिक छ के जो पकज योजनमा ते सधळा आर्यदेश समाया सो (६२६ योजन-६ कला प्रमाण ) भरत क्षेत्रना बाकी. रहेल योजन ( ५२५, ६) लर्य निरुफल थायछे ( हाली रहेछ. ) ॥ ११ ॥ ___ सथा मारिका अथवा अयोध्या नगरी के जे धम्ने नगरीओ कुवरदेव बनावेली होषाथी निश्च प्रमाणमां (लबार पहोळामा) मरखीज छे. कारणके बग्ने नगरी १२ योजन कांधी अने १ योजन पहोळो छ ।। २०॥ पमांनी पकज नगरीना प्रमाणने १००० (=१००० ना क्षेत्रफळ) करतां १० कोड में ८० लाख योजन ( १२.९=१०८+१.००=1000=१०८०००००० योजन ) याय, अने ४४० मा क्षेत्रफळ्या गुणतां ( १०८+१६००००=) १७२८. 0000 उस्सेध मोशन प्रमाण एक नगरी धायः ॥ २१ ॥ जे कारण माटे नगरीनु ए प्रमाण घणुन मोटु थयु ते अयोग्य भासे के. मादे पूरच्या विकर्नु ( नगरीनु प ) प्रमाण प्रमाणांगुलना षिष्कमयी प्रक्षण करवू जोड्प, ॥ २४ ॥ तथा पूर्वे किया प्रमाणे एषा घणा मोटा प्रमाणवाळी मगरी होय तो साधेली छे दक्षिण दिशा ( दक्षिणना ३ खंड ) जेणे अने परिमित आयुप्यषाळा पषा कोणिक राजानु ( चकनि यमवाना स्लोभे ) पैतान प्रत्ये गमन केम या शके? (अर्थात् मगरी बहार निकलना पहेलांज आयुष्य संपूर्ण था रहे.) ।। २५ ॥ पुनः शाश्वतस्यवन्दना करवाने घेताय गुफा पाते. अने ( अशाश्वतदेवाधिष्टित प्रभाधिक ) चैत्यने वन्दन करपा माटे सभयनगरमां (# हाल पंजायमां पिंडदादरखा गामनी नजोक भेरानामथी आळस्याय ने तेमा) गंधार श्रापकर्नु गमन केम था शके ? ॥ २६ ॥ ( माटे पृथ्व्यादि. का प्रमाण प्रमाणांगुलना विष्फभषडे जमाएषा युक्त छ. परात्पर्य का) वळी भेटलापक जे एम कहै है के–५ प्रमाणे ( विस्कंभवढे ) पृथ्क्यादि प्रमाण माप्ये छते भरतक्षेत्रमा भरतचक्रीनो परिवार ( ७२००० महानगर विगेरे- बार यार योजन प्रमाण ९ निधिभो-६४०० परिणीत सीमो अमे हरेक श्रीमो थे वे दातो मलीने १९२... सर्व स्त्रीयो-३२००० देश८४00000 घोडा-८४०००८. स्मि-८५-०... रथ-९६ कोड गाम-स्यादि)
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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