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॥ प्रमाणांगुल-भान्मांगुलविषयम्वरूपम् ।। प्रमाणांगुलना मानपद पर्वन अने पृथ्व्यादि शाश्वनपदार्थों. मापया ॥ ४२ ॥ तेषां पण केटलाएक एम कहेछे के-पृथ्व्यादिकनु माप प्रमाणांचलनी दीर्घता (४०. उन्सेशंगुल प्रमाण दीर्घता ) वडे कर, अने केटलाएक कहेछे के प्रमाणांगुलना ( १००० उन्सेघांगुलरूप ) क्षेत्रफळबडे माप कर, ॥ ४३ ॥ अने फेटलाएक प्रमाणांगुरु ना विकभव हे मापचा कहेछे, एत्रण पक्षमा प्रामाणिक पक्ष कयो के ? तेनो निश्चय करवाने सहज समर्थ छे ॥ ४४ ॥ अहि प्रयमपक्षमा एक योजनने विषे उत्सेगुलममाणवाला ४०० योजन, चीजे पक्षे १००० योजन, अने श्रीजे पक्षे २॥ जोजन (१० कोश ) यायहे. परन्तु श्रीअनुयोगद्वारचूर्णिमां बीजो ज पक्ष ग्रहण करेलो देखाय छे तेनो पाठ आ प्रमाणे
__"धळी जे प्रमाणांगुलथी पृथ्व्यादिकनां प्रमाण मपायछे, ते प्रमाणांगुलना विकभव हे मापयां, परन्तु सूचि अंगुल वडे नहि."
पुनः श्रीमुनिचंद्रसूरिकृत अंगुलसित्तरिमा पण कई छे केकेदलाएक ए पृथ्व्यादिकने ( प्रमाणांगुलना ) क्षेत्रफळवर जे मापे छे, अने केटलाएक वळी सूचिअंगुलना प्रमाणषदे मापे छे ते सूत्रमा कहेल नथी"
संबं अधिक चर्चानो विस्तार श्रीमुनिसुंदरसूरिकृत 'अंगुलसप्ततिका ग्रन्थयी जाणवो.
५ अंगुलसिप्तरी ग्रन्यनो भार्थ आ प्रमाणे छ - जे पृथ्ठयादिकनां प्रमाण कहेला छ ते तेना ( प्रमाणांगुलना ) विक्रम बहे मपाय छ, प प्रमाणे श्री अनुयोगद्वारणिं अने वृत्तिमां कडेल, के. ते मा प्रमाणे- गाथा १३ मी ॥
"ज अ पमाणांगुलाओ पुदवाइपमाणा आणिति ते अ पमाणांगुल विश्वंभण आणेयख्या ण पुण सूद अंगुलणति " ॥६॥ ( गतार्थ )
बळी पृथ्व्यादिकमा प्रमाण केटलापक प्रमाणांगुलमाक्षेत्रफळपडे मापेछे अने बीजा केटलापक सूचिअंगुलबडे मापे छे ते सूत्रोक्त नयी ॥ १५ ॥
परन्तु सम्ने मतने विषे ( सूचिथी अने क्षेत्रफळथी मापता ) मगधवेश अंगदेश, अने काला विगेरे प्रायः सर्थ आयवेश पकज योजनमा समार जाय ॥ १६ ॥