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________________ (५७४) ॥ योगद्वारे औदारिकमिश्रयांगविचारः ॥ (द्वार C तेथी "कार्मणमिश्र " एम को छतं ते कार्मणमित्र शुं औदारिकसंबंधि के के बीजा कोइ शरीर संबंध छे ? तेनो निर्णय करी शकात नथी ॥ १३ ॥ अने उत्पत्तिनी अपेक्षाए (ते घेळाए) औदारिकनी प्रधानता छे, अने ते कदाचित् उत्पतिवा होवाथी ते [ औदारिकसंबन्धी] तो स्वीकार निःसंशय पणे थाय है ॥ १४॥ ते मारे तेनो (उभय मिश्रनो) औदारिकमिश्रपणारूप व्यपदेश युक्तिवाळो छे, अने कार्मणमिश्रपणारूप व्यपदेश तेवा मकारनी युक्तिवाळो नथी ||१२|| वळी ज्यारे औदारिषदेने धारण करनार वैक्रिय लब्धिवाळो पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्येच मनुष्य पादराका || १६ || वैक्रिय शरीर रचवानी आरंभ करें परन्तु प्रनथ होय ते वखते वैक्रिय देह सहित (होवाथी) निश्चय औदारिकमिश्र योग होय ॥ १७ ॥ ए प्रमाणे आहारकलब्धिवाळा मुनिने आहारक देहना प्रारंभकाळे आहारकदेद्द सहित औदारिकमिश्र योग होय ||१८|| जो के अहिं बने स्थाने मिश्रता परस्पर तुल्यन छे तोपण आरंभकपणावडे औदारिकदेहनी प्रधानता के || १९ ॥ मारे बन्नेनो व्यपदेश औदारिकना नामवडे ज है, परन्तु श्री जिनेश्वरोए (ते मिश्रनो) आहारक अने वैयिना नाम वडे व्यपदेश फर्यो नश्री ||२०||ए सिद्धांतकारोनो मत के अने कर्मग्रंथना आणकारो तो ते बन्ने योगने अनुक्रमे वैयिम अने आहारकमिश्रण कहे हे ॥ २१ ॥ जे कारणयी ? या आरंभांने वैकियना त्यागमां पण तेओ ( कार्मग्रंथिको वैक्रियनी प्रधानता होवाथी) वैक्रियमिश्र ज कई छे तेमज आहारकमां पण तेवी रीतेज कहे छे ||२२|| वैयिशरीरनी पर्याप्तिवडे पर्याप्त थयेला जीवोने वैक्रियकाययोग होय, अने वैक्रियमिश्र तो वे प्रकारे होय है || २३ || त्यां नारक अने देवने अपर्याप्त अवस्थामां जै मिश्र योग है ते क्रियमिश्र योग कार्मण साथै मिश्र होय ॥२४॥ तथा मनुष्य अथवा तिच पंचेन्द्रिय अथवा वायु ज्यारे वैक्रिय शरीर करीने कृतकार्य (कार्य समाप्त थये) थयो छतो ते वैकियनो त्याग करतो ||२५|| ज्यारे औदारिकशरीरनी अंदर प्रवेश करवाने प्रयत्न करं स्थारे औदारिकसहित एवो वैयमिश्र योग होय ॥ २६ ॥ वळी अहिं पण मिश्रभाव बन्नेमां [बन्ने देहमां] रहेलो के तोपण (वैयिनी ) मवानतार सेने वैयिना नामधी मिश्र (क्रियमिश्र) १ भाषार्थ ए छे के औदारिकादि भवधारणीय शरीर जसकार्मणमी अपेक्षा कदाचित् उत्पत्तिबाळां दोषाथी मिश्रपणामां औदारिकादि शरीरनी मुख्यता ग्रहण करी आंदारिकमित्र क्रियमिश्र इत्यादि नाम आपवाथी कोमी लाप्ये मिश्र ? पवो मंशय रहेतो नथी.
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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