________________
(५५२) ॥ गुणस्थानछारे गुणस्थानेषु स्पर्शनाबारविचारः ॥ (बार ल्योपमना असंख्यातमा भागप्रमाण कालसुधी मिश्रदृष्टिगुणस्थान निरन्तर पमाय के. एटले उत्कर्षयो क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भाग प्रमाण काल जाणत्रो,
(४) सोधु अविरतमम्याधिगणास्थान-गण प्रकारना जीवोने होय छे, १ औपशमिकसम्यक्त्वाळाने, २ क्षायिकसम्यक्त्ववालाने अने ३ क्षायोपशमिकसम्यक्त्वबाळाने, तेमां औपशमिक सम्यक्त्व अनादिमिध्यादृष्टिजीवोने यतुं १ तथा उपशमश्रेणि करनारने धतुं २ गम बे प्रकारचं छे, तेमां अनादिमिथ्यात्व त्यजीने यता प्राथमिक औपशामिक सम्यक्त्व सहित अविरसगुणस्थान अन्तमहतप्रमाण होय छे, अन्तमुहर्त बाद सैद्धान्तिकमते त्रिपुंज नहि करता होवायी मिथ्यात्वज पामे, अने कामैग्रन्थिकमते त्रिपुन कयु होवाथी कोड़ जीव क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पामे, कोइक जीव मिश्रदृष्टि थाय, कोइक सास्वादन पामी मिध्यात्वे जाय, उपशमश्रेणिमा थता औपशमिकसम्यक्त्व सहित अविरतगुणस्थान पण अन्तर्मुहतिज रहे छे, क्षायिकसम्यक्त्य सहित अविरतणुणस्थान जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त वाद देशविरत्यादि गुण पामे तो अन्तर्मुहर्तकाल प्रमाण, अने उत्कृष्थी उत्कृष्टायुष्ये अनुत्तरविमानमां उत्पन्न थइ अझै आवी ज्यां मुधी चिरति न पामे त्यांमुधी पटले साधिक तेत्रीश सागरोपम प्रमाण जाणवू, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व सहित अविरतगुणस्थान जघन्यथी अन्तर्मुहृर्तकाल ममाण, त्यारबाद पतित थाय-मिथ्यात्वादि पामे, अगर देशविरत्यादि गुण पामे, अथवा उपशमश्रेणि करे तो औपाभिक सम्यक्ल पामे, अ. थवा क्षायिकसम्यक्त्व पामे. उत्कर्षथी साधिक तेत्रीश सागरोपमप्रमाण होय छे, ने आ प्रमाणे-मायोपशमिक सम्यक्त्ववान् कोइ साधु उत्कृष्टस्थितिना अनुत्तर विमानमा तेत्रीश सागरोपमना आयुप्ये उत्पन थाय त्यां ते नेत्रीश सागरोपम सुधी अविरत होय छे, बळी त्यांची च्यवीने अहीं आन्या छतां ज्यांसुधी विरतिगुण प्राप्त न करे त्यांसुधी पण अविरत होप छे, माटे सातिरेक तेत्रीश सागरोपमकाल क्षायोपशामिक सम्यक्त्वसहित अविरतगुणस्थाननो जाणवो, शंका-कोइक जीव अनुत्तर विमानोमां तेत्रीश सागरोपम मुधी अविरतपणुं अनुभवी अहि आव्या छतां पण विरति पाम्यो नथी. अने अविरत सम्यक्त्वभावमांज आयुष्य पूर्ण करी सम्यक्त्वनीज आराधनाना को उत्कृष्ट बावीश सागरोपमनी स्थितिये घारमा देवलोक उत्पन्न थाप नो तेने अविरत सम्यक्त्वनो साधिक पञ्चावन सागरोपम विगैरे वधार काल पण संभवी शके छे छना नेत्रीशसागरोपमन काल केम कयो ? उत्तर-आ प्रमाणे