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| कोकमकाशे प्रयमः सर्गः ॥ ८ उस्लपणलक्षिणको
| কলিজা ८ लक्षणलक्षिणका
१ रेणु ८ ऊर्ध्वरेणु .
१ सरेणु : . प्रसरेणु
। যন্ত ८ रपरेणु
१ कुरुक्षेत्रवालान ८ कुरुक्षेत्रवालान
१ हरियपरम्पकपालाम ८ हरिवर्षरम्यकवालाम
{ हिमपंत हिरण्यवंतवालाय ८" हिमपंतहिरण्यवंतषालान १ विदेहवालाप ८ विदेहवाला
१ भरतऐरषतवाला ८ भरत ऐश्वतवालाम
१ लीन ८ हीच
१ यूका (पू) ८ यूका (5)
१ यबमध्य ८ यषमध्य
१ उत्सेधोगुळ १ ( जम्मूखोप प्रमाप्तिआदिसूत्रोने अभिप्राये विदेहक्षेवना पाठवासानेकरी पक लीना याय के साकी पूजा विगेरे प्रमाण सरखं छे.)
६ अहि पाटीगणितनो अपेक्षाए ( क्षेत्रफलमे हिसाये ) १००० गणु प्र. माणांगुल कटु छे.
७ अधेि उम्सेधांगुले घोचीरनु पक आस्मांगुल का', परन्तु से प. हु विचारषा याग्य छे. अने से संबंधि से विस्तृत उल्लेख श्री मलयगिरिमी महाराजे वृहत्संग्रहणीनो टीकामों की छे तेज अर्थ अने अक्षरश: दशाियरी
जो हजारगणुं उत्सधांगुल ते पक प्रमाणांगुल कहेषाय छे. अने प्रमाणां गुरु ते भरतनु भारपांगुल छ तो भरतपत्ति श्रीपीर भगवामयी ५०० गुण थाय. ते केवी रीते ' पम जो पूछता हो तो कहीप छीप के.. " उ. तमपुरषो तो स्वांगुलपडे १.८ अंगुल उधा होय" ५ वचम प्रमाण होवाची भरतचक्रवति पोताना अंगुलषद १८ अंगुल प्रमाण होई शके, अमे भरतनु खात्मांशुल उस्सेधांगुलगी अपेक्षाये १००० गणु दोध के तो १०८ मै १०००पी गुणतां १०८000 (पक हाल आठ हजार ) पाय, हवे भगवान श्रीवर्धमान