________________
(५४२) ॥ गुणस्थानबारे गुणस्थानेषु सत्पदमरूपणतादिद्वारविचारः ।। (हार गुणस्थान पर्याप्ता जीवानेज होय तमां पण एकन्द्रिप विफलन्द्रिय अने संमूर्छिमपं. + चेन्द्रियमा होतुं नथी तो पण लोकान्तिक बने अनुत्तर शिवायना पर्याप्त देवोमां पर्याप्त नारकिओमां अने पर्याप्त गर्भजमनुष्योमा तथा पर्याप्त गर्भजतिर्यचोमा वर्तन होवाथी ते गुणस्थानवर्तिजीवी पण असंख्याता छे.(३)अविरतसम्पग्दष्टिगुणस्थानक पर्याप्त अपर्याप्त गर्भजमनुष्यो,पर्याप्त अपर्याप्त गर्भजतियचो,पर्याप्त अपर्याप्त देवताओ अने सातमी नारकीना पर्याप्त नारकीओ तथा बाकीना सर्व पर्याप्त अपर्याप्न नारकीओ ए सर्वमा वर्ततुं होवाथी ते गुणस्थानार्तिजीवो असंख्याना अने(४) देशविरसगुणस्थानक पण गर्भज पर्याप्ततिर्यंचोमां तथा गर्भज पर्याप्तकर्मभूमिजमनुष्योमां वर्ततुं होवाथी तिर्यंचोनी अपेक्षाए ते गुणस्थानवतिजीत्रो पण अ. संख्याता छ, अविरतसम्यग्दृष्टि अने देशविरत बेउ ध्रुव होवाथी ते चे गुणस्थानवर्निजीवों सदाकाल विद्यमान होय छे मात्र कोइवखते जयन्यपदे होय अने कोइ कालविशेषे उत्कृष्टपदे पण होय, तेमां जयन्यपदे पण ते घेउ प्रत्येक क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमाभागमा रहेला आकाशमदेशराश्रितुल्य संख्याये होय अने उत्कृष्टपदे पण तेज क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भागमा रहेला आकाशप्रदेश राशितुल्यसख्याये होय विशेष पटलो छे के असंख्याताना असंग्व्याता भेदो होवाथी जघन्यकरता उत्कृष्ठपदवति जीवो असंख्यातगुणा छ,वळी ते घेउमां परस्पर विचार करता मनुष्य अने तिर्यंचगतिना देशविरतजीवो करता चारे गतिना अविरतसम्यग्दृष्टिजीवो जघन्यपदे वधारे होय अने उत्कृष्टपदे पण वधारे होय. (५) मिथ्यादृष्टिजीवो अनन्त लोकाफाश प्रदेशराशितुल्य संख्याप्रमाण अनन्ता होयछे, अनन्तानन्तजीवोथी गहन भरेली सूक्ष्म बादर निमोदो मिथ्यात्वभावमा छे. वादरमूक्ष्म पर्याप्त अपर्याप्त तेउकाय तथा वायुकापजीवो पण मिथ्यात्वमांज छे, पृथ्वी अपकाय अने मत्येक वनस्पतिकायमां बादर अपर्याप्तावस्थामा अल्पकाल थोडाक जीवोमां सम्यक्त्वांश होय छे ते वाद करता बाकीना सर्व मूक्ष्म बादर पर्याप्त अपर्याप्त पृश्वीकाय अप्काय अने वनस्पत्तिकाय सर्व जीवो मिथ्यात्वमा छ, केटलाक अपर्याप्तविकलेन्द्रियो शिवाय सर्वपर्याप्त अपर्याप्त विकलेन्द्रियो, केरलाक अ. पर्याप्त समूर्छिम तिर्यंच शिवाय सर्व पर्याप्त अपर्याप्त समूर्छिमपंचेन्द्रियो अने केटलाफ पर्याप्त तथा अपर्याप्त देवता नारकी तियेच अने मनुष्यरूपसंज्ञिपंचेन्द्रियजीवो शिवायना सर्व संजिपंचेन्द्रियो मिथ्यात्वभावमां छे,आ सर्वमा पण मूक्ष्मनिगोद(सूक्ष्मसाधारणवनस्पति)वनि जीवो अनन्तलोकाकाशपदेशराशि तुल्य होबाथी ते अपेक्षाये