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________________ + ३०) ॥ श्रीलोकनकाशे तृतीयः सर्गः ॥ [सा० २३८) (५४१) आ चौदे गुणस्थानोमा सत्पदप्ररूपणता विगेरे द्वारोनी श्रीपंचसंग्रहारिग्रन्थोमा पूर्वाभावि भरूपया पताची छे तेज जिज्ञामु भन्यजीवोना उपकारार्थे संक्षेपधी बतावीए छीये. , सत्पदप्ररूपणा द्वार-पहल मिथ्यादृष्टि १, चोथु अविरतसम्यग्दृष्टि २, पांची देशविरत ३, छटुं प्रमत्त ४, सातर्मु अप्रमत्त ५, अने तेरसे सयोगिकेबलि ६, ए छ गुणस्थानको सदाकाल विद्यमान होपछे, ते शिवायना बीजुं सास्वादनसम्यग्दृष्टि १, त्रीजु मिश्रदृष्टि २, आठमु अपूर्वकरण ३, नवमु अनिवृत्तिबादरसंपराय ४, दशम सक्ष्मसंपराय ५, अगीआर उपशान्तमोडवीतरागछयस्थ ५, बारसुंक्षीणमोहवीतरागमस्थ ७, चौदमु अयोगिकेवल ८, ए आठ गुणस्थानो पैंकी श्रेणिोना विरहकालमा आठमु, नवमु, दशम, अगीआरम अने बारम्, ए पांच गुणस्थान,सिद्धिना छमासना विरहकालमां चौदमु तथा सम्यक्त्वमातिनो विरहकाल होवाथी बीजं अने मिश्रना बिरहकालमा त्रीजुं ए आठ गुणस्थानोनो कदाचित विरह पण होय एटले के ए गुणस्थानफोये वर्तता जीवो न पण लाभे, कोइ कालविशेषे कोइएक गुणस्थानके एक पण जीव होय, कोइ काल विशेषे अनेक जीवो पण होय, कोइ काल विशेष आट गुणस्थानकोपको ये गुणस्थानोमा क्रमोस्क्रमे एकानेक जीवो विकल्पथी होय,ए प्रमाणे त्रणा चारमा विगेरे भंगकल्पनाओ थाय छे. जे विस्तारथी पूर्वमहर्षिोये बतावीछे ते ते ग्रन्थोथी जोह लेवी. २ द्रव्यप्रमाणद्वार-प्रथम (१-२-३-४) सास्वादनसम्यग्दृष्टि वीजें मिश्रदृष्टि, त्रीर्जु अविरतसम्यग्रदृष्टि अने चोथु देशविरत ए चार गुणस्थानतिजीवो प्रत्येके उत्कृष्ट काले असंख्याता होय, तेमां (१-२) सास्वादन अने मिथकाळा अध्रुव होवाथो कोइ काले न पण होय अने होय तो जघन्यथी एक अथवा वे होय अने उत्कर्षथी क्षेत्रपल्योपमना असंख्यातमा भागवति आकाशप्रदेशराशि तुल्यसंख्या परिमाण होयळे, कारणके-सास्वादनगुणस्थान कर्मग्रन्थना अभियाये केटलाफ चादर अपर्याप्त १ पृथ्वीकाय, २ अपकाय अने ३ प्रत्येक वनस्पतिकाय ए त्रण मकारना एकेन्द्रिय जीवोमां ( सिद्धान्तना अभिमाये एकेन्द्रियोमा सास्वादन मान्यु नथी) तथा अपर्याप्त प्रण विकलेन्द्रियोमां, अपर्याप्त संमूर्छिम तिर्यंचपंचेन्द्रियोमां, पर्याप्त तथा अपर्याप्त गर्भजतिर्यचोमां, पर्याप्त तथा अपर्याप्त लोकान्तिक अने अनुत्तर शिवायना देवोमा पर्याप्त तथा अपर्याप्त गर्भजमनुष्योमां अने पर्याप्तनारकीओमा वर्ततं होवाथी ते गुणस्थानचर्ति जीवो असंख्याता छ अने मिश्रष्टि
SR No.090439
Book TitleLokprakash
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherSanghvi Seth Shri Nagindas Karamchand Ahmedabad
Publication Year
Total Pages629
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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