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(५४०), ॥गुणस्थानानामन्तरस्वरूपनिरूपणम् ॥ (द्वार १० गुणस्थानोर्नु अन्तर अन्तर्मुहर्त के ॥९७|| मिथ्यात्वर्नु उस्कृष्ट अन्तर बे छासठ (१३२) सामरोपम साधिक कहेल छे, तेनी विचारणा आ प्रमाणे के, ते सांभको ॥९८॥ कोइक जीव सम्यकत्वनी उत्कृष्टस्थिति (साधिक ६६ सागरोपम) अनुभषीने त्यारवाद अन्तर्मुहत मिश्रने अनुभवीने वली सम्यक्त्वनी ६६ सागर प्रमाण उल्लष्टस्थिति संपूर्ण करीने कादाय कोइक जीव मिथ्यात्वे जाय तो ते उत्कृष्ट अन्तर (१३२ सागरोपम) थाय० ॥९९-१३००॥ सास्वादनादि १० गुणस्थानोर्नु उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गलपरावर्त प्रमाण कहेलं छै ॥ १ ॥ बळी झपकना अष्टमादि त्रण (८-९-१०) गुणस्थानोमा (अप्रतिपातिपणुं होवायो) अन्तर कदीपण होतुं नथी, तेमज एकवार प्राप्ति होवाथी क्षीणमोहादि प्रण (१२-१३-१४) गुणस्थानोमां पण अन्तर नथी. ॥शा ए प्रमाणे गुणस्थानद्वार कg. ॥ इति गुणस्थान द्वारम् ॥
॥ गुणस्थान परिशिष्टो. ॥
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पुरुषने
श्रेणिमा उपशमाती अने क्षय पामती
प्रकृतिओनो तफावत. उपशमश्रेणिमा खीने
नपुंसकने १ नपुंसकवेद १ नपुंसकवेद १ स्त्रीवेद २ स्त्रीवेद २ स्त्रीवेद
२ नपुंसकवेद ३ हास्यादि६ ३ हास्यादि ६ ३ हास्यादि ६ ४ पुरुषवेद ४ पुरुषवेद
४ पुरुषवेद क्षपश्रेणिमा. पुरुषने
खोने
नपुंसकने १ नपुंसकवेद
१ नपुंसकवेद १ स्त्रीवेद २ स्त्रीवेद २ पुरुषवेद
२ पुरुषवेद ३ हास्यादि ६ ३ हास्यादि
३ हास्यादि ६ ४ पुरुपद ४ स्त्रीवेद
४ नपुंसफवेद १ बहुलताप आक्रम छ, प्रधान्तरमा क्रमभेद पण देखाय छे. ते अंणिओना टिप्पणमा उपर बताव्यो छ.