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३०) ॥ श्रीलोकप्रकाशे तृतीयः सर्गः (सा० २३६) चीजु-बार, अने तेर ए त्रण शिवायना शेष ११ गुणस्थानमां जीव मरण पामे छे ॥ ८० गुणस्थानानुं अल्पबहुत्व-११ मा गुणस्याने रहेला जीवो सर्वथी अल्प छे कारण के तेओ उत्कृष्टधी पण समकाळे ५४ संभवे . ।। ८१ ॥ तेथी क्षीणमोहगुणस्थानवाळा संख्यात गुणा के कारण के तेओ समकाळे १०८ होय , तेथी अष्टमादि त्रण गुणस्थानवाला (८-९-१० गुणस्थानचाळा ) विशेषाधिक होय छे ॥ ८२ ॥ कारण के क्ने श्रेणिमा रहेला जीवो अहिं एकठा थाय छे ( उपशमश्रेणिमास ५४ ने क्षपकश्रेणि मान १०८ जीवो ए गुणस्थानमां आवे ) अने ते प्रणेमा प्रत्येकमा ते सर्व जीवो १६२ ( १६२ ए १०८ करतां वमणा न हो. वाथी विशेषाधिक कहेवाय छे ) होय छे.॥ ८३ ॥ अने ते अणे गुणठाणामां जीवो परस्पर तुल्य होय छे. तेथी सयोगिकेवलि-अपमत्त ने प्रमत्त जीवो अनुक्रमे संख्यातगुणा होय छे,कारण के रोगो कोधि, कोशिशन को गोटिवाइस (कृष्ट एकसोसीत्तेर तीर्थंकरभगवानना काळा नवक्रोड केवलिभगवंतो विचरता होय अने नव हजारकोड साधुभगवंतो विचरता होय तेमा अमुक भाग अप्रमत्तमां वाकी प्रमत्त गुणगणामां होय अने जघन्यकाले वीच तीर्थकर भगवन्तो विधमान होय ने काले चे कोड केवलिभगवन्तो अने बेचे हजारकोड साधु भगवन्तो बिचरता होय छे.) होय छे ।। ८४ ॥ नेथी पांचमा देशविरत-वीजा सास्वादन-बीना मिश्रअने चोया अविरत ( मां वर्तता ) जीवो अनुक्रमे प्रत्येक असंख्यातगुणा छै, देशविरतमा तियेचो पण केटलाक भळे ले, अने सास्वादन मिश्र अने अविरत ए त्रण गुणस्थान चार गतिना जीवोने होय छे) अने तेथी अयोगिकेवलि अनंअभीवावधि " कडेला संभधे छे, अन्यथा अन्मथी मरणपर्यंत तो पहेलु' अने घोथुप बेश गुणस्थान होय.
१ आचारांगनियुक्तिमा अघन्यकाले दश तीर्थकरी होवार्नु पण जणाषे छे.
२ आ धारेगुणम्यानपति जी वो प्रत्येक प्रत्येक उत्कृष्टपवे क्षेत्रपन्योपमना असंख्यातमा भागबति आकाशप्रदेश राशि प्रमाण छे,तोपण असंम्यातमा असंख्यात मैदो होषाथी परस्पर पताषेलु असंख्यातगुणु अस्पबहुत्व घटीशके छ, देशपिरति मनुष्य अने तिर्यंच मांज बोय छ जेथी रणनी अपेक्षाये नानु असंख्यातु,सास्वादन पणु चारे गप्तिमा खोय छे तेथी ते अमंगपातगुण छ, तेना करता मिथनो काल अधिक होषाथी ने असंख्यातगुण छ, अविरतलभ्यगपष्टिनो काल क्षणीज छ जेथी से मिथना करता पण असंख्यातगुण जाणमा ( इति भावः )
३वन्तुस; अयोगिकेवळी जे १४ मा गुणस्थानमाळा कडेवाय छे तेव्लाज मीषो अहिं न लेषा पण ते सहित सिद्धी पण [योगमा अभाव के माटे] अयो