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३०) ॥श्रीलोफप्रकाशे तृतीयः सर्गः । [सा० २३६] (५३३) , देहमा व्याप्त आत्मपदेशवाळा याय. ॥३५॥ अने ते अयोगिभगवान् समुच्छिन्नकिया अभाविपाशी ना बोधु अपलध्यानने ध्याता छता काळथी पांच हस्वाक्षरना उच्चार प्रमाण (अ इ उ ऋ ल अथवा हु अ ण न म ना उचार जेटला काळ ममाणवाळा ), शैलेशी करणयां जाय अने त्यारबाद ते शैलेशीकरणने माम थयेला आ अयोगि केवली योग ( मन वचन कायाना ) व्यापारथी रहित थाय छे, अने त्यार पछी अनुक्रमे मोक्ष पामे छ. ।। ६६-६७ ॥ देवनी गनि-१ अने देवानुपूर्वी-२ शुभ अने अशुभ ए बे विहायोगति-४ वे गंध-६ आठ स्पर्श १४पांच रस-१९-पांच वर्ण२४-पांच शरीर-२९ ॥६८|| तथा पांच बंधन-३४ पांच संघातन-३९ निर्माण-४० छ संघयण-४६ अस्थिर-४७ अने अशुभ-४८ तथा ॥६९॥ दुभंग-४९ दुःस्वर-५० अनादेय-५, ने अयश-५२ तथा छ संस्थान-५८ अगुरुलघु-५५ उपघात-६० ॥ ७० ॥ पराघात-६१ श्वासोच्छवास-६२ अने अपर्याप्त-६३ नामकर्म (प्रकृतिओ) नथा अशाता श शातामांनी एक-६४ पत्येक ६५ स्थिर ६६ अने शुभ-६७ ॥७॥ण उपांग-७० नीचगोत्र-७१ अने सुस्वर-७२ ए ७२ प्रकृतियो अयोगि गुणस्थानना उपान्त्य समये क्षय पामे ॥ ७२ ॥ अने मनुष्यगति-१ मनुष्यानुपूर्वी-२ तथा मनुष्यायुष्य-३ एत्रण तथा प्रम-४ बादर-५ पर्याम-5 ने यश-७ ए चार ॥७३॥ उगोत्र-८ आदेय-९ सुभग-१० जिन [ तीर्थकर ] नाम-११ अने शाता अशातामांथो कोई एक-१२ तथा पत्रन्द्रिय जाति-१३॥४॥ ए १३ प्रकृत्तियो अयोगीकेवलि अन्त्य समये खपावीने मूळथी दूर थयाँ छ कम जेमना एवा ते अयोगिभगवान् मोक्ष पामे छे ।।७।। अहि मतान्तरे मनुष्यानुपूर्वी उपान्त्य समये खपावे तो त्या उपान्त्य समये ७३ प्रकृतियो क्षय पामे, अने अन्त्य समये १२ प्रकृतियो क्षय * पामे [एम मतान्तर जाणवो.]॥७६॥ आ प्रमाणे चौदमु अयोगिकेवलि गुणस्थानk स्व. रूप जाणबु.॥१४॥(हवे गुणस्थानोनो परभवसहगमनादि विचार कहे छे)
आद्यं द्वितीयं तुर्य च,गुणस्थानान्यमूनि वै। गच्छन्तमनुगमट धनुन्य बे हाय सोळ आंगळ प्रमाणामों पक तृतीयांश भाग न्यून करता बाकी ३३३ धनुण्य १ हाथ अने ८ आंगळ अयशेष रहे,
१शले शोमां शैल-पर्थतमा ईश-मुन्य ने शैलेश-पटले मेरुपवत तेना सरखं जे निश्चल-स्थिर ध्यान अथवा अषस्था ते शैलेशीकरण अथवा शीत सषरभाव तेथी थत चारित्र ते शैल तेनोश ते शैलेश-र्य संवरभाव अमन्धक दशानुं ययाण्यातचारित्र ते अप्राप्तनुं प्राप्त करवू.